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सत्यमेव टाइम्स में आपका स्वागत है डॉ० बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति गोरखपुर ने डीएम को भेजा पत्र संतकबीरनगर: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 21 और 22 दिसंबर-2016 एवं 24 जून 2019 को प्रदेश के 17 उप- जातियों को मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल करने के शासनादेश को उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल कर रद्द कराने वाले डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर के अध्यक्ष, सेवानिवृत्त अपर आयुक्त वाणिज्यिक कर विभाग उत्तर प्रदेश हरिशरण गौतम ने जिलाधिकारी संतकबीरनगर को पत्र भेजकर शिल्पकार (कुम्हार) जाति के व्यक्तियों को जाति प्रमाण- पत्र जारी किये जाने के सम्बन्ध में 27 फरवरी- 2025 को जारी आदेश को अविधिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से वापस लेने की‌ मांग किया है।   जिलाधिकारी को भेजे गये अपने पत्र में डाक्टर बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर के अध्यक्ष हरिशरण गौतम, उपाध्याय द्वारिका राम, महासचिव रामाश्रय ने कहा है कि कुम्हार जाति को शिल्पकार के अन्तर्गत मानकर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने संबंधी आपके आदेश पत्रांक /पि० व० क०/जाति प्र० पत्र/2024-25 दि० 27 फर० 2025 'कुम्हार, प्रजापति' जातियाँ 'उत्तर प्रदेश की अन्य पिछड़े वर्ग की सूची' के क्रमांक 16 पर अंकित हैं। आपके पत्र में उल्लिखित जाति, 'शिल्पकार (कुम्हार)' नाम से कोई जाति न तो ओबीसी की सूची में अंकित है और न ही अनुसूचित जाति की सूची में अंकित है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम- 1994 की अनुसची तीन जारी अंतर्गत धारा 3(3) में अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक 64 पर 'शिल्पकार' जाति लिखी है। यह शिल्पकार मूलतः अछूत जाति के अन्तर्गत हैं जो पत्थर तराश कर सील बट्टा बनाने का काम करते हैं। इसके पूर्व मिर्ज़ापुर क्षेत्र के कसेरा जाति के लोग जो मूलतः धातु के बर्तन बनाने का काम करते हैं, अपने को शिल्पकार के अन्तर्गत मानते हुए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त करने का प्रयास किये थे जिसे जिलाधिकारी, मिर्ज़ापुर द्वारा निरस्त कर दिया गया था। जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर के आदेश के विरुद्ध पीड़ित व्यक्ति स्वरूप चंद सिंह ने माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका संख्या-35775/2013 योजित किया। इस याचिका पर तीन न्यायाधीशों सुनील अम्बवानी, देवेंद्र प्रताप सिंह व डा सतीश चन्द्र की पूर्ण पीठ ने 29 मई 2014 को अंतिम निर्णय लेते हुए स्वरूप चंद सिंह द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। इस वाद में हम इंटरवेनर के रूप में अपने अधिवक्ता राकेश कुमार गुप्त के साथ उपस्थित हुए थे। माननीय न्यायालय ने हमारे तर्कों को ध्यान पूर्वक सुना (संदर्भ- आदेश पैरा 9 से 12 तक) कि राष्ट्रपति द्वारा 1950 में जारी अनुसूचित जाति, तत्संबंधित 1956 में जारी यथासंशोधित सूची में कोई भी संशोधन संविधान के अनुच्छेद 341(2) में दी गई व्यवस्था के तहत संसद द्वारा ही किया जा सकता है। इस संदर्भ में न तो राज्य सरकार को कोई अधिकार है और ना ही किसी न्यायालय को। इसी आशय का एक अन्य महत्वपूर्ण आदेश माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 31अगस्त 2022 को PIL NO. 2129/2017 डा० बीआर आम्बेडकर ग्रंथालय एवं जनकल्याण समिति बनाम उत्तर प्रदेश सरकार आदि द्वारा दाखिल याचिका पर दिया गया है। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णित उक्त दोनो आदेशों की प्रतियां संलग्न कर प्रेषित की जा रही हैं। आप देखेंगे कि उक्त न्यायालीय आदेशों के क्रम में आपका आदेश 27 फरवरी 2025 विधिक रूप से सही नहीं है। 'शिल्पकार (कुम्हार)' को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी करने हेतु अपने अधीनस्थ उप जिलाधिकारियों व तहसीलदारों को दिये गये आदेश दिनांक 27 फरवरी 2025 को तत्काल वापस लेने का कष्ट करें जिससे ओबीसी की कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शिल्पकार जाति का गलत प्रमाण-पत्र जारी न होने पाए। अन्यथा स्थिति में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उक्त दोनो वादों में दिए गए आदेशों की अवमानना होगी।

शिल्पकार (कुम्हार) जातियों को एससी का जाति प्रमाण-पत्र जारी करने के आदेश वापस लेने की मांग।

डॉ० बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति गोरखपुर ने डीएम को भेजा पत्र

संतकबीरनगर: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 21 और 22 दिसंबर-2016 एवं 24 जून 2019 को प्रदेश के 17 उप- जातियों को मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल करने के शासनादेश को उच्च न्यायालय इलाहाबाद में जनहित याचिका दाखिल कर रद्द कराने वाले डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर के अध्यक्ष, सेवानिवृत्त अपर आयुक्त वाणिज्यिक कर विभाग उत्तर प्रदेश हरिशरण गौतम ने जिलाधिकारी संतकबीरनगर को पत्र भेजकर शिल्पकार (कुम्हार) जाति के व्यक्तियों को जाति प्रमाण- पत्र जारी किये जाने के सम्बन्ध में 27 फरवरी- 2025 को जारी आदेश को अविधिक बताते हुए तत्काल प्रभाव से वापस लेने की‌ मांग किया है।

 

जिलाधिकारी को भेजे गये अपने पत्र में डाक्टर बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर के अध्यक्ष हरिशरण गौतम, उपाध्याय द्वारिका राम, महासचिव रामाश्रय ने कहा है कि कुम्हार जाति को शिल्पकार के अन्तर्गत मानकर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी करने संबंधी आपके आदेश पत्रांक /पि० व० क०/जाति प्र० पत्र/2024-25 दि० 27 फर० 2025 ‘कुम्हार, प्रजापति’ जातियाँ ‘उत्तर प्रदेश की अन्य पिछड़े वर्ग की सूची’ के क्रमांक 16 पर अंकित हैं। आपके पत्र में उल्लिखित जाति, ‘शिल्पकार (कुम्हार)’ नाम से कोई जाति न तो ओबीसी की सूची में अंकित है और न ही अनुसूचित जाति की सूची में अंकित है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम- 1994 की अनुसची तीन जारी अंतर्गत धारा 3(3) में अनुसूचित जाति की सूची के क्रमांक 64 पर ‘शिल्पकार’ जाति लिखी है। यह शिल्पकार मूलतः अछूत जाति के अन्तर्गत हैं जो पत्थर तराश कर सील बट्टा बनाने का काम करते हैं। इसके पूर्व मिर्ज़ापुर क्षेत्र के कसेरा जाति के लोग जो मूलतः धातु के बर्तन बनाने का काम करते हैं, अपने को शिल्पकार के अन्तर्गत मानते हुए अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र प्राप्त करने का प्रयास किये थे जिसे जिलाधिकारी, मिर्ज़ापुर द्वारा निरस्त कर दिया गया था। जिलाधिकारी मिर्ज़ापुर के आदेश के विरुद्ध पीड़ित व्यक्ति स्वरूप चंद सिंह ने माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में रिट याचिका संख्या-35775/2013 योजित किया। इस याचिका पर तीन न्यायाधीशों सुनील अम्बवानी, देवेंद्र प्रताप सिंह व डा सतीश चन्द्र की पूर्ण पीठ ने 29 मई 2014 को अंतिम निर्णय लेते हुए स्वरूप चंद सिंह द्वारा दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। इस वाद में हम इंटरवेनर के रूप में अपने अधिवक्ता राकेश कुमार गुप्त के साथ उपस्थित हुए थे। माननीय न्यायालय ने हमारे तर्कों को ध्यान पूर्वक सुना (संदर्भ- आदेश पैरा 9 से 12 तक) कि राष्ट्रपति द्वारा 1950 में जारी अनुसूचित जाति, तत्संबंधित 1956 में जारी यथासंशोधित सूची में कोई भी संशोधन संविधान के अनुच्छेद 341(2) में दी गई व्यवस्था के तहत संसद द्वारा ही किया जा सकता है। इस संदर्भ में न तो राज्य सरकार को कोई अधिकार है और ना ही किसी न्यायालय को। इसी आशय का एक अन्य महत्वपूर्ण आदेश माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा 31अगस्त 2022 को PIL NO. 2129/2017 डा० बीआर आम्बेडकर ग्रंथालय एवं जनकल्याण समिति बनाम उत्तर प्रदेश सरकार आदि द्वारा दाखिल याचिका पर दिया गया है। माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा निर्णित उक्त दोनो आदेशों की प्रतियां संलग्न कर प्रेषित की जा रही हैं। आप देखेंगे कि उक्त न्यायालीय आदेशों के क्रम में आपका आदेश 27 फरवरी 2025 विधिक रूप से सही नहीं है। ‘शिल्पकार (कुम्हार)’ को अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी करने हेतु अपने अधीनस्थ उप जिलाधिकारियों व तहसीलदारों को दिये गये आदेश दिनांक 27 फरवरी 2025 को तत्काल वापस लेने का कष्ट करें जिससे ओबीसी की कुम्हार जाति को अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शिल्पकार जाति का गलत प्रमाण-पत्र जारी न होने पाए। अन्यथा स्थिति में माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उक्त दोनो वादों में दिए गए आदेशों की अवमानना होगी।

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