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अहंकार व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण:रामकुमार जी महराज_रिपोर्ट-मनोज शुक्ला - Satyamev Times Media Network.
सत्यमेव टाइम्स में आपका स्वागत है सिद्धार्थनगर। अहंकार व्यक्ति के पतन का कारण है। जो लोग जो झूठे यशगान से मद में चूर हो जाते हैं। ऐसे शत्रु का गुणगान करके विजय प्राप्त की जा सकती है। उक्त विचार कथाव्यास रामकुमार महाराज ने व्यक्त किया।वे बांसी क्षेत्र के अतरमू नानकार में आयोजित श्री विष्णु महायज्ञ एवं संगीतमयी श्रीराम कथा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नारद जी एक बार समाधि में लीन हो गए। घबराहट में इंद्र ने उनकी समाधि तोड़ने के लिए कामदेव को भेजा। लेकिन कामदेव उनसे हार मान गया। और उनके चरणों में गिरकर उनका गुणगान करने लगा। बोला कि आपसे इन्द्र थर्रा गए। आप त्रिदेव से भी बड़े हैं। नारद को यह सुनकर अभिमान हो गया। वे शिव जी पास पहुंचकर अपना यशगान किया। शिव ने उन्हें मना किया कि अब यह बात किसी से मत कहना। खासकर भगवान विष्णु से। लेकिन नारद नही माने वे भगवान विष्णु से भी अंहकार में आकर मिले। भगवान की लीला से उन्हें मोह हुआ। और उन्होंने भगवान विष्णु को शाप तक दे डाला। लेकिन जब उन्हें ज्ञान हुआ, तब बड़ा ही दुःख हुआ। कथा व्यास ने कहा जिस प्रकार कामदेव ने नारद को अहंकार में लाकर उन्हें सही मार्ग दिखलाया, उसी तरह किसी भी अज्ञानी शत्रु को उसकी बड़ाई करके सही मार्ग पर लाया जा सकता है। कार्यक्रम में संयोजक पं. शुभम, पं. अंशुदास, पं. विपिन आचार्य, मुख्य यजमान इंद्रभूषण मिश्र,दया शंकर मिश्र, रामसागर मिश्र, सतीशचन्द्र मिश्र, जितेंद्र मिश्र, चन्द्रपाल मिश्र, अन्नू पाण्डेय, बाबा राजकुमार आदि सहित तमाम श्रोता शामिल रहे।

अहंकार व्यक्ति के पतन का मुख्य कारण:रामकुमार जी महराज_रिपोर्ट-मनोज शुक्ला

सिद्धार्थनगर। अहंकार व्यक्ति के पतन का कारण है। जो लोग जो झूठे यशगान से मद में चूर हो जाते हैं। ऐसे शत्रु का गुणगान करके विजय प्राप्त की जा सकती है।
उक्त विचार कथाव्यास रामकुमार महाराज ने व्यक्त किया।वे बांसी क्षेत्र के अतरमू नानकार में आयोजित श्री विष्णु महायज्ञ एवं संगीतमयी श्रीराम कथा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि नारद जी एक बार समाधि में लीन हो गए। घबराहट में इंद्र ने उनकी समाधि तोड़ने के लिए कामदेव को भेजा। लेकिन कामदेव उनसे हार मान गया। और उनके चरणों में गिरकर उनका गुणगान करने लगा। बोला कि आपसे इन्द्र थर्रा गए। आप त्रिदेव से भी बड़े हैं। नारद को यह सुनकर अभिमान हो गया। वे शिव जी पास पहुंचकर अपना यशगान किया। शिव ने उन्हें मना किया कि अब यह बात किसी से मत कहना। खासकर भगवान विष्णु से। लेकिन नारद नही माने वे भगवान विष्णु से भी अंहकार में आकर मिले। भगवान की लीला से उन्हें मोह हुआ। और उन्होंने भगवान विष्णु को शाप तक दे डाला। लेकिन जब उन्हें ज्ञान हुआ, तब बड़ा ही दुःख हुआ। कथा व्यास ने कहा जिस प्रकार कामदेव ने नारद को अहंकार में लाकर उन्हें सही मार्ग दिखलाया, उसी तरह किसी भी अज्ञानी शत्रु को उसकी बड़ाई करके सही मार्ग पर लाया जा सकता है। कार्यक्रम में संयोजक पं. शुभम, पं. अंशुदास, पं. विपिन आचार्य, मुख्य यजमान इंद्रभूषण मिश्र,दया शंकर मिश्र, रामसागर मिश्र, सतीशचन्द्र मिश्र, जितेंद्र मिश्र, चन्द्रपाल मिश्र, अन्नू पाण्डेय, बाबा राजकुमार आदि सहित तमाम श्रोता शामिल रहे।

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