Time in United States now
सत्यमेव टाइम्स में आपका स्वागत है

  संतकबीरनगर जिले के सदर विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे, वरिष्ठ समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी के पैतृक गांव भिठहां में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन की शुरुवात भगवान की पूजा अर्चना और आरती के साथ हुई। कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने अजामिल कथा सुनाते हुए कहा कि दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन संगत से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कथा प्रारंभ होने के पहले कथा की मुख्य यजमान श्रीमती चंद्रावती देवी, पूर्व विधायक जय चौबे, सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी, पूर्व प्रमुख राकेश चतुर्वेदी समेत परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कथा व्यास का आशीर्वाद लेते हुए भगवान की आरती की। कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी को अंगवस्त्र और दान दक्षिणा के साथ ही उनके संगीत मंडली टीम के सदस्यों को अंगवस्त्र और दक्षिणा प्रदान करते हुए पूर्व विधायक जय चौबे ने कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी का सपरिवार आशीर्वाद प्राप्त किया। आपको बता दें कि पूर्वांचल के मालवीय कहे गए स्वर्गीय पंडित सूर्य नारायण की स्मृति में आयोजित संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने बताया कि अजामिल कान्यकुब्ज ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। एक दिन वह गांव से बाजार जा रहे थे तो उन्होंने एक नर्तकी को देख लिया। नर्तकी वेश्या थी बावजूद इसके वह उसे अपने घर ले आए। अजामिल अपने नौ बच्चों के साथ रहने लगे। एक दिन पच्चीस संतों का एक काफिला अजामिल के गांव से गुजर रहा था। यहां पर शाम हो गई तो संतों ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखा। इससे वह बौखला गया और साधुओं को भला बुरा कहने लगा। इस आवाज को सुन कर अजामिल की पत्‍‌नी जो वेश्या थी वहां आ गई। पति को डांटते हुए शांत कर दिया। अगले दिन साधुओं ने अजामिल से दक्षिणा मांगी। इस पर वह फिर बौखला गया और साधुओं को मारने के लिए दौड़ पड़ा। तभी पत्‍‌नी ने उसे रोक दिया। साधुओं ने कहा कि हमें रुपया पैसा नहीं चाहिए। इस पर अजामिल ने हां कह दिया। साधुओं ने कहा कि वह अपने होने वाले पुत्र का नाम तुम नारायण रख ले। बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्‍‌नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इसके बाद जब अजामिल का अंत समय आया तो यमदूतों को भगवान के दूतों के सामने अजामिल को छोड़ कर जाना पड़ गया। इस तरह अजामिल को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसलिए कहा गया है कि भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। कथा के दिन पांडाल में भक्तो की भारी भीड़ भी देखने को मिली। संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के दौरान भक्ति भजनों पर भक्त गण भक्ति रस में गोते लगाते नजर आए।

अजामिल की कथा में छिपी है जीवन की शिक्षा – पं० ज्ञान चंद्र द्विवेदी 

 

संतकबीरनगर जिले के सदर विधान सभा क्षेत्र के पूर्व विधायक दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे, वरिष्ठ समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी के पैतृक गांव भिठहां में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन की शुरुवात भगवान की पूजा अर्चना और आरती के साथ हुई। कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने अजामिल कथा सुनाते हुए कहा कि दुष्ट एवं दुराचारी होने के बावजूद संतों की एक दिन संगत से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कथा प्रारंभ होने के पहले कथा की मुख्य यजमान श्रीमती चंद्रावती देवी, पूर्व विधायक जय चौबे, सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी, पूर्व प्रमुख राकेश चतुर्वेदी समेत परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कथा व्यास का आशीर्वाद लेते हुए भगवान की आरती की। कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी को अंगवस्त्र और दान दक्षिणा के साथ ही उनके संगीत मंडली टीम के सदस्यों को अंगवस्त्र और दक्षिणा प्रदान करते हुए पूर्व विधायक जय चौबे ने कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी का सपरिवार आशीर्वाद प्राप्त किया। आपको बता दें कि पूर्वांचल के मालवीय कहे गए स्वर्गीय पंडित सूर्य नारायण की स्मृति में आयोजित संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने बताया कि अजामिल कान्यकुब्ज ब्राह्माण कुल में जन्मे थे और कर्मकाण्डी थे। एक दिन वह गांव से बाजार जा रहे थे तो उन्होंने एक नर्तकी को देख लिया। नर्तकी वेश्या थी बावजूद इसके वह उसे अपने घर ले आए। अजामिल अपने नौ बच्चों के साथ रहने लगे। एक दिन पच्चीस संतों का एक काफिला अजामिल के गांव से गुजर रहा था। यहां पर शाम हो गई तो संतों ने अजामिल के घर के सामने डेरा जमा दिया। रात में जब अजामिल आया तो उसने साधुओं को अपने घर के सामने देखा। इससे वह बौखला गया और साधुओं को भला बुरा कहने लगा। इस आवाज को सुन कर अजामिल की पत्‍‌नी जो वेश्या थी वहां आ गई। पति को डांटते हुए शांत कर दिया। अगले दिन साधुओं ने अजामिल से दक्षिणा मांगी। इस पर वह फिर बौखला गया और साधुओं को मारने के लिए दौड़ पड़ा। तभी पत्‍‌नी ने उसे रोक दिया। साधुओं ने कहा कि हमें रुपया पैसा नहीं चाहिए। इस पर अजामिल ने हां कह दिया। साधुओं ने कहा कि वह अपने होने वाले पुत्र का नाम तुम नारायण रख ले। बस यही हमारी दक्षिणा है। अजामिल की पत्‍‌नी को पुत्र पैदा हुआ तो अजामिल ने उसका नाम नारायण रख लिया और नारायण से प्रेम करने लगा। इसके बाद जब अजामिल का अंत समय आया तो यमदूतों को भगवान के दूतों के सामने अजामिल को छोड़ कर जाना पड़ गया। इस तरह अजामिल को मोक्ष की प्राप्ति हुई। इसलिए कहा गया है कि भगवान का नाम लेने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। कथा के दिन पांडाल में भक्तो की भारी भीड़ भी देखने को मिली। संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के दौरान भक्ति भजनों पर भक्त गण भक्ति रस में गोते लगाते नजर आए।

Leave a Reply

hi Hindi
error: Content is protected !!