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संतकबीरनगर -व्यक्ति को अहंकार नहीं करना चाहिए, अहंकार बुद्धि और ज्ञान का हरण कर लेता है। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। उक्त बातें संतकबीरनगर जिले के भिठहा में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के दौरान कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने की। कथा के पांचवे दिन की शुरुवात भगवान की आरती कार्यक्रम से हुई जिसमे परिवार के अग्रज पूर्व विधायक जय चौबे समेत कथा आयोजक वरिष्ठ समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी तथा कथा की मुख्य यजमान उनकी माता श्रीमती चंद्रावती देवी समेत पूरा कुटुंब और आसपास के सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित रहे। कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का जब प्रसंग सुनाया तब श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।
कथा व्यास पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी  ने बताया कि जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए। शास्त्री ने कहा कि जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। जैसे ही कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ पूरा पंडाल जयकारों से गूंजने लगा। श्रीकृष्ण जन्म उत्सव पर नन्द के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की भजन जब प्रस्तुत किया गया तब श्रद्धालु भक्ति में लीन होकर जमकर झूमे। एक-दूसरे को श्रीकृष्ण जन्म की बधाईयां दी गई, एक-दूसरे को खिलौने और मिठाईयां बाटी गई।

भिठहां गांव में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के पांचवे दिन श्री कृष्ण जन्म की कथा सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु

संतकबीरनगर –व्यक्ति को अहंकार नहीं करना चाहिए, अहंकार बुद्धि और ज्ञान का हरण कर लेता है। अहंकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। उक्त बातें संतकबीरनगर जिले के भिठहा में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के दौरान कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने की। कथा के पांचवे दिन की शुरुवात भगवान की आरती कार्यक्रम से हुई जिसमे परिवार के अग्रज पूर्व विधायक जय चौबे समेत कथा आयोजक वरिष्ठ समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी तथा कथा की मुख्य यजमान उनकी माता श्रीमती चंद्रावती देवी समेत पूरा कुटुंब और आसपास के सैकड़ों ग्रामीण उपस्थित रहे। कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का जब प्रसंग सुनाया तब श्रीकृष्ण की जन्म कथा का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।
कथा व्यास पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी  ने बताया कि जब अत्याचारी कंस के पापों से धरती डोलने लगी, तो भगवान कृष्ण को अवतरित होना पड़ा। सात संतानों के बाद जब देवकी गर्भवती हुई, तो उसे अपनी इस संतान की मृत्यु का भय सता रहा था। भगवान की लीला वे स्वयं ही समझ सकते हैं। भगवान कृष्ण के जन्म लेते ही जेल के सभी बंधन टूट गए और भगवान श्रीकृष्ण गोकुल पहुंच गए। शास्त्री ने कहा कि जब-जब धरती पर धर्म की हानि होती है, तब-तब भगवान धरती पर अवतरित होते हैं। जैसे ही कथा के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ पूरा पंडाल जयकारों से गूंजने लगा। श्रीकृष्ण जन्म उत्सव पर नन्द के आनंद भयो जय कन्हैयालाल की भजन जब प्रस्तुत किया गया तब श्रद्धालु भक्ति में लीन होकर जमकर झूमे। एक-दूसरे को श्रीकृष्ण जन्म की बधाईयां दी गई, एक-दूसरे को खिलौने और मिठाईयां बाटी गई।

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