उत्तर प्रदेश सरकार के 17 जातियों को एससी में डालने की अधिसूचना हाईकोर्ट से रद्द होने के बाद भी राजस्व कर्मियों के मिली भगत से तहसील खलीलाबाद में धड़ल्ले से बन रहे फर्जी अनुसूचित जाति तुरैहा का जाति प्रमाण-पत्र
राजस्व कर्मी उड़ा रहे है उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश की धज्जियाँ, जिम्मेदार मौन
तुरहा जाति अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, एवं पिछड़ी जाति किसी भी जाति की सूची में सूचीबद्ध नहीं हैं बावजूद इसके इन जाति का बन रहा फर्जी अनुसूचित जाति का प्रमाण-पत्र
रिपोर्ट_कुलदीप मिश्र
संतकबीरनगर: तुरहा जाति के लोग भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश,अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा दिए गये सूचना में सुस्पष्ट रुप से लिखा है कि तुरहा जाति किसी भी सूची में सूचीबद्ध नहीं है। नगर पंचायत मगहर के विभिन्न मुहल्लों एवं तकिया बाजार निवासी एक तुरहा समाज के सम्पूर्ण परिवार के लोग अपनी जाति तुरहा से फर्जी तुरैहा बनकर, सरकारी अभिलेखों में हेरा फेरी कर, धोखाधड़ी जाल, फरेब, व कूट रचना करके अनुचित लाभ लेने के उद्देश्य से तुरहा जाति से फर्जी अनुसूचित जाति “तुरैहा” बनकर जाति बदल कर तथ्य छिपाकर,राजस्वकर्मियों व तहसीलदार की मिलीभगत से अनुसूचित जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर केन्द्र व प्रदेश सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के लिए चलाये जा रहे विभिन्न योजनाओं का अवैध रुप से लाभ ले रहे हैं। लोगों पर फर्जी एससी/एसटी का मुकदमा दर्ज कराकर अनुदान ले रहे है धनुगाही कर रहे है जबकि तुरैहा जाति मगहर तो क्या पूरे जिले में कही भी निवास नहीं करती है।
गौरतलब हो कि पिछले वर्ष 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित करने के यूपी सरकार के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर चुका है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग की 17 उप-जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने या स्वीकार करने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा केवल संसदीय कानून के जरिए ही किया जा सकता है। तत्कालीन चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जेजे मुनीर ने कहा है, “संविधान के अनुच्छेद-341 के प्रावधान संसद द्वारा बनाए गए कानून को छोड़कर संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश,1950 द्वारा प्रदान की गई राज्य में अनुसूचित जाति की सूची में किसी भी जाति या समूह को शामिल करने के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ते हैं।”उत्तर प्रदेश सरकार ने जिन जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने की इच्छा प्रकट की थी, वे -मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा, गोडिया, मांझी और मछुआ हैं। मामला पीठ डॉ बीआर अंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण समिति, गोरखपुर द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर विचार कर रह वर्ष 2016 के 21 दिसंबर और 22 दिसंबर, में जारी दो सरकारी आदेशों को चुनौती दी गई थी। उन आदेशों के जरिए कुछ ‘अन्य पिछड़ी जातियों’ को अनुसूचित जाति घोषित करने की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि संविधान के अनुच्छेद-341 के प्रावधान के तहत किसी भी जाति को एससी लिस्ट में शामिल करने का अधिकार केवल संसद के पास है। इसके अलावा एक अन्य रिट याचिका गोरख प्रसाद ने दायर की थी, जिसमें राज्य की ओर से 24 जून, 2019 को जारी आदेश को उसी प्रभाव के लिए चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया था कि अनुसूचित जातियों की सूची भारत के राष्ट्रपति द्वारा तैयार की गई थी और इसमें कोई भी बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है और राज्यों को इसमें किसी भी तरह से संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, जहां तक 21 दिसंबर 2016 के आदेश का संबंध है, उसने संविधान के अनुच्छेद- 341 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश,1950 में किसी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में जोड़ा या पेश नहीं किया है। न्यायालय ने कहा कि 21 दिसंबर के आदेश में केवल यह कहा गया है कि मझवार जाति के सदस्य, जिनकी अनुसूचित जाति के आदेश में प्रवेश संख्या 53 है, उन्हें उनकी स्थिति के सत्यापन के बाद आवश्यक प्रमाण पत्र जारी किए जाने चाहिए, इसलिए,न्यायालय को उस आदेश में कोई अवैधता नहीं मिली है। हालांकि, 22 दिसंबर के आदेश के संबंध में कोर्ट ने कहा कि उसने स्पष्टीकरण के नाम पर 17 अन्य पिछड़े जानियों को अनुसूचित जाति के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता दी है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यूपी सरकार का 17 जातियों को अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता देने का आदेश, जो वैसे ओबीसी की श्रेणी में हैं, उचित नहीं था, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 341 के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार को ऐसा करने की अनुमति नहीं है। कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य बनाम केशव विश्वनाथ सोनोन Civil Appeal No 4096 of 2020 पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि राष्ट्रपति के आदेश में शामिल करने या बाहर करने, संशोधित करने या बदलने की शक्ति स्पष्ट रूप से और विशेष रूप से संसद में निहित है। उक्त प्रावधानों और आदेशों के मद्देनज़र कोर्ट ने 22 दिसंबर 2016 और 24 जून 2019 के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश का अवमानना कर हल्का लेखपाल, राजस्व निरीक्षक अनुचित लाभ लेकर फर्जी रिपोर्ट तैयार कर फर्जी जाति प्रमाण-पत्र तैयार करा रहे हैं।
अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष ब्रजलाल ने पूर्वी यूपी के जिलाधिकारियों को निर्देश दिया था कि उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में पिछड़ी जाति के लोग अनुसूचित जाति व जनजाति का प्रमाण पत्र बनवाकर सरकारी नौकरी व अन्य लाभ ले रहे हैं। इससे संबंधित कई शिकायतें राज्य अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के मिली हैं। आयोग ने संबंधित जिलों के जिलाधिकारियों को अभियान चला कर फर्जी जाति प्रमाण पत्रों की जांच करने और इसे बनाने वाले राजस्व कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। आयोग के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने कहा था कि गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर, गोरखपुर, महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, आजमगढ़, मऊ, वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, पिछड़ी जाति के लोग एससी- एसटी का प्रमाण पत्र बना कर ले रहे लाभ फर्जी प्रमाण पत्र बनाने वाले राजस्व कर्मियों के खिलाफ होगी कार्रवाई भदोही, गाजीपुर, सुल्तानपुर, प्रयागराज, अंबेडकरनगर और अयोध्या आदि जिलों में पिछड़ी जाति (कहार, कुम्हार, कमकर, भुर्जी, तुरहा आदि) के लोगों ने ऐसे फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाए हैं। आयोग को यह भी शिकायत मिली है कि इस तरह के फर्जी जाति प्रमाण पत्र वर्तमान में भी बनवाए जा रहे हैं। इसमें अधिकतर ने गोंड व खरवार जाति के प्रमाण पत्र बनवा लिए हैं। जिलाधिकारियों को भेजे निर्देश में पूर्व अध्यक्ष ने कहा था कि अभियान चलाकर ऐसे मामलों की जांच करने के साथ ही फर्जी जाति प्रमाण पत्रों को तत्काल निरस्त करने की कार्यवाही की जाए। इतना ही नहीं, फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनाने वाले राजस्व कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई किए जाएं। साथ ही आयोग ने ऐसे प्रमाण पत्र बनवाने वाले और इसमें सहयोग करने वाले लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने के भी निर्देश दिए थे।