विधानसभा चुनाव में 3 दर्जनों से अधिक सीटों पर पर पड़ेगा इसका व्यापक प्रभाव
उत्तर प्रदेश के कुल मतदाताओं में लगभग 6% अग्रहरि बिरादरी के मतों को सहेजने के लिए अग्रहरि समाज (रजि.)उत्तर प्रदेश संगठन ने अपने प्रयास तेज कर दिए हैं। अग्रहरि समाज के सर्वमान्य नेता पूर्व सांसद श्यामाचरण गुप्त के मृत्यु के बाद समाज की राजैनीतिक भूमि को सहेजने के लिए अभी हाल ही में हुए अखिल भारतीय स्तर पर हुए संगठनात्मक चुनाव के माध्यम से चुनकर आए उनके जेष्ठ पुत्र विदुप अग्रहरि तथा उत्तर प्रदेश अग्रहरि समाज के चुनाव में निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष श्रवण कुमार अग्रहरि ने काफी गंभीर प्रयास प्रारंभ कर दिए हैं।अग्रहरि समाज को सहेजने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं। अग्रहरि बिरादरी का गढ़ अवध क्षेत्र व बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा,चित्रकूट जनपद में भी इस बिरादरी की अच्छी तादात है। अग्रहरि बिरादरी को भगवान राम के वंशजों के रूप में जाना जाता है।
पिछले करीब तीन दशकों से स्वर्गीय श्यामाचरण अग्रहरि (गुप्त) एवं राधेश्याम अग्रहरि फतेहपुर अग्रहरि बिरादरी स्थापित नेता बने जिन्हें केन्द्र सरकार के सांसद व प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में अग्रहरि समाज को राजनैतिक भागेदारी सुनिश्चित की।इसी क्रम में समय समय पर विभिन्न राजनैतिक दलों से गौरी राम अग्रहरि(विधायक दो बार INC से) 306फरेन्दा के प्रथम वर्ष में, दूसरी बार 243 फरेन्दा वेस्ट से,प्यारी देवी पत्नी गौरीराम विधायक 194- फरेन्दा विधानसभा से 60-70 केदशक में (वर्तमान महराज गंज जनपद) सोमचन्द गुप्ता कानपुर,विकास अग्रहरि विधायक अयाशशाह फतेहपुर,राजेश अग्रहरि उर्फ (राजेश मसाला) जिला पंचायत अध्यक्ष अमेठी, समय समय पर राजनैतक भागेदारी सुनिश्चित करते रहे। पूर्व सांसद श्यामा चरण गुप्ता की कोरोना काल में मृत्यु के पश्चात अग्रहरि बिरादरी के राजनैतिक धरोहर को सहेजने की जिम्मेदारी संगठन के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष विदुप अग्रहरि( जेष्ठ पुत्र स्वर्गीय श्यामाचरण गुप्ता) तथा उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष श्रवण कुमार अग्रहरि बहुत ही शिद्दत से निभाने का प्रयास कर रहे हैं। जिसकी बानगी अभी हाल ही में तब देखने को मिला, जब उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी द्वारा बिना अग्रहरि समाज के संगठन से सहमति लिए अपने आगाज 2022 कार्यक्रम के विज्ञापनों में अखिल भारतीय अग्रहरि वैश्य समाज के नाम का उपयोग किया गया तो अग्रहरि समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विदुप अग्रहरि ने जहा खुलकर प्रयागराज में प्रेस वार्ता कर इसका विरोध किया वही प्रदेश अध्यक्ष श्रवण कुमार अग्रहरि मे लखनऊ में प्रेस वार्ता कर जबरदस्त विरोध दर्ज कराया। जिसका असर भी देखने को मिला और इस कार्यक्रम से अग्रहरि समाज के लोगों ने दूरी बनाए रखा।
वैश्य समाज के अग्रहरि बिरादरी अवध क्षेत्र के लखनऊ, सुल्तानपुर, रायबरेली, कानपुर, भदोही, प्रयाग, अयोध्या, अंबेडकर नगर, प्रतापगढ़, कौशांबी, फतेहपुर, जौनपुर, गोरखपुर, बस्ती, संतकबीरनगर, सिद्धार्थ नगर,महाराजगंज तथा काशी क्षेत्र के वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, मिर्जापुर ,सोनभद्र तथा बुंदेल क्षेत्र के बांदा,चित्रकूट, के लगभग 65 विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाती है।जिसमें लगभग 20 विधानसभा सीटों में इस बिरादरी की बहुत बड़ी तादात है। जो अपने स्तर पर विधानसभा सीट जीतने की क्षमता रखती हैं। लेकिन पूर्व में संगठनात्मक एकजुटता के अभाव के कारण किसी भी राजनीतिक दल का इधर ध्यान नहीं गया। लेकिन पिछले 4 वर्षों से लगातार श्रवण कुमार अग्रहरि 2016 में जब से अग्रहरि समाज के युवा प्रदेश अध्यक्ष बने, तभी से संगठनात्मक ढांचा बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से ग्रामीण अंचलों का सघन दौरा कर तथा लगातार मीटिंग में के माध्यम से दुरुस्त करते रहे, और अब नवंबर 2021 में अग्रहरि समाज उत्तर प्रदेश का प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद श्रवण कुमार अग्रहरि द्वारा अपने टीम व राष्ट्रीय अध्यक्ष विदुप अग्रहरि के साथ मिलकर उनके कुशल मार्गदर्शन में समाज के राजनीतिक भागीदारी दायरे को बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है। जिसका प्रभाव अनेक अग्रहरि बिरादरी बहुल क्षेत्रों में देखने को भी मिल रहा है।
सियासी सफर और कद पर नजर डालें तो अग्रहरि समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष विदुप अग्रहरि के पास यहां अपने पिता का राजनीतिक विरासत है वही अग्रहरि समाज उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष जुझारू जमीनी नेताओं में गिने जाते हैं। जिनका अपने क्षेत्र संत कबीर नगर के व्यापारी समाज के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के अपने बिरादरी के नौजवानों में काफी अच्छी पकड़ है। ऐसे में अग्रहरि समाज के संगठन को नजरअंदाज करना राजनीतिक दलों के लिए कई विधानसभा सीटों पर भारी पड़ सकता है। क्योंकि अग्रहरि बिरादरी के नौजवान तबका काफी जागरूक और सक्रिय हुआ है। जो श्रवण कुमार अग्रहरि को अपना नेता मानता है,जो लगातार समाज के लोगों के बीच उनके सुख-दुख में शामिल होकर हमेशा सक्रिय रहते हैं। संगठन को ग्रामीण क्षेत्रों तक विस्तार देने का श्रेय भी श्रवण अग्रहरि की टीम को जाता है। उनकी टीम के लोगों का सोशल मीडिया से लेकर समाज के अंतिम पायदान तक जबरदस्त पकड़ है तथा उनकी आवाज बनकर उभरे हैं