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Who is advising Mamta पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अंदर दूसरे कई प्रादेशिक क्षत्रपों की तरह आत्मघाती प्रवृत्तियां हैं। जीत को हजम करना उनके लिए भी मुश्किल हो रहा है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने के बाद वे समझ रही हैं कि उन्होंने देश जीत लिया है। वे नतीजों का आकलन वस्तुनिष्ठ तरीके से नहीं कर रही हैं। वे यह नहीं देख रही हैं कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नाम पर भाजपा ने जो 38 फीसदी वोट हासिल किया था उसे वह विधानसभा में भी बचाने में कामयाब रही है। इसका मतलब है कि जितने लोगो ने 2019 में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट किया था उतने ही लोगों ने 2021 में ममता को मुख्यमंत्री नहीं बनाने के लिए वोट किया है। ममता के चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कई जगह माना है कि नरेंद्र मोदी बंगाल में बहुत लोकप्रिय हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी के मुकाबले अपने को खड़ा करने का प्रयास ममता को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
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Who is advising Mamta
लेकिन वे विधानसभा की जीत के रथ पर सवार हैं और कुछ भी फैसले कर रही हैं। पता नहीं किसने उनको सलाह दी कि वे तृणमूल कांग्रेस संसदीय बोर्ड की अध्यक्ष बन जाएं। वे पहले से राज्य की मुख्यमंत्री हैं और पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। वे निर्विवाद पार्टी की सर्वोच्च नेता हैं। फिर भी उन्होंने अपने पुरानी साथी सुदीप बंदोपाध्याय को हटा कर खुद ही संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनने का फैसला किया। संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का पद कोई ऐसा पद नहीं होता है, जिससे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री को कोई अतिरिक्त अधिकार मिल जाते हैं। वे सर्वोच्च नेता हैं और उनको यह साबित करने के लिए सारे पद खुद रखने की जरूरत नहीं है। जैसे बिहार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने किसी दूसरे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है और किसी तीसरे को संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया है। सारे पद खुद रखने और सारे अधिकारी भतीजे को देने की ममता की राजनीति अंततः उनकी छवि को प्रभावित करेगी। इससे भाजपा को उनके ऊपर हमला करने का मौका मिलेगा।
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