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संतकबीरनगर जिले की राजनीति के नए गॉड फादर बने "जय चौबे" - Satyamev Times Media Network.
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सत्यमेव टाइम्स में आपका स्वागत है   मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा हौसला हार के बैठूँगा तो मर जाऊँगा मशहूर शायर साकी अमरोहवी के ये शेर संतकबीरनगर जिले के पूर्व सदर विधायक दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे पर एकदम सटीक बैठते है। जय चौबे की पहचान एक लड़ाकू नेता के रूप में होती है, बेहतरीन नेतृत्वकर्ता जय चौबे विषम परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेते है जिसके चलते आज वो जिले के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में जाने जा रहें है। मौजूदा वक्त की राजनीति में पूर्व विधायक जय चौबे को लोग अब जिले की राजनीति का गॉड फादर कहने लगे हैं। लोगों की जुबां पर यही चर्चा आम है कि "जय" जिसके सिर पर हाथ रख देते हैं उसकी नैया पार हो जाती है, वो व्यक्ति चुनाव जीत जाता है जिसके साथ "जय" मजबूती के साथ खड़े रहते है। राजनीति के शुरुवाती दौर में पहलवान सिंह जैसे मजबूत व्यक्ति को हराकर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष बनने के बाद जय चौबे कभी रुके नहीं, अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिए जब उन्होंने ईमानदारी से जब प्रयास करना शुरू किए तब वो जिला पंचायत सदस्य फिर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष बने, साल 2005 में खलीलाबाद ब्लॉक के प्रमुख बने।जय चौबे प्रमुख संघ के जिलाध्यक्ष भी रहे। उस दौर से ही जय चौबे की पहचान एक बाहुबली के रूप में की जाने लगी थी, अपने इसी बाहुबल का प्रयोग करते हुए उन्होंने साल 2010 में अपने छोटे भाई राकेश चतुर्वेदी को नाथनगर ब्लॉक का प्रमुख बनाया। हालांकि 2012 के विधान सभा चुनाव में उन्हे हार का सामना करना पड़ा, पर साल 2012 की गलतियों से सबक लेते हुए जय चौबे ने बड़े ही मजबूती के साथ राजनीति में कमबैक किया और साल 2017 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर अयूब और बीएसपी के मशहूर आलम चौधरी को बुरी तरह से हरा कर खलीलाबाद के विधायक बने। खुद विधायक बनने के बाद जय चौबे ने अपने राजनैतिक शिष्य श्याम सुंदर वर्मा को शहर का चेयरमैन बनाया, बीते जिला पंचायत चुनाव में बलराम यादव को सदस्य बनाने के साथ उन्हे जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने वाले जय चौबे ने अपने एक और शिष्य मुमताज अहमद को जिले के सबसे बड़े ब्लॉक सेमरियावा की सल्तनत सौंपी। बीजेपी में रहकर बीजेपी नेताओं की लाख कोशिशों पर पानी फेरते हुए उन्होंने जिस तरह से बलराम को जिला पंचायत अध्यक्ष और मुमताज की मां को प्रमुख बनाया उससे आज हर कोई वाकिफ है, पार्टी से बगावत कर अपने दो शिष्यों को स्थापित करने वाले जय चौबे साल 2022 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी छोड़ सपा का दामन थाम लिया, हालांकि इस चुनाव में उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा, योगी मोदी लहर में जिस मजबूती के साथ जय चौबे ने विधानसभा चुनाव लड़ा वो एक मिसाल बन गया, मामूली अंतरों से भले ही जय चौबे हार गए पर जनता के दिलों को जीत लिए, जनता खुद ही समीक्षा कर ये कहने लगी थी कि यदि उन्हे समय पर सपा ने टिकट दिया होता तो दूसरी बार वो खलीलाबाद के विधायक बन जाते। खैर जो बीत गया सो बीत गया, 22 के विधान सभा चुनाव के बाद एक बार फिर जब चुनावी बयार चली यानी नगर निकाय का चुनाव आया तब उन्होंने बीजेपी के किले में सेंधमारी कर जिस तरह से जगत जायसवाल को शहर का चेयरमैन बनाया। उसे देख लब्बोलुआब यही कहा जा सकता है कि जय हैं तो सब मुमकिन है। जय ने जिसके सिर पर भी हाथ रखा वो चुनाव जीत गया।

संतकबीरनगर जिले की राजनीति के नए गॉड फादर बने “जय चौबे”

 

मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा

हौसला हार के बैठूँगा तो मर जाऊँगा

मशहूर शायर साकी अमरोहवी के ये शेर संतकबीरनगर जिले के पूर्व सदर विधायक दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे पर एकदम सटीक बैठते है। जय चौबे की पहचान एक लड़ाकू नेता के रूप में होती है, बेहतरीन नेतृत्वकर्ता जय चौबे विषम परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल बना लेते है जिसके चलते आज वो जिले के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में जाने जा रहें है। मौजूदा वक्त की राजनीति में पूर्व विधायक जय चौबे को लोग अब जिले की राजनीति का गॉड फादर कहने लगे हैं। लोगों की जुबां पर यही चर्चा आम है कि “जय” जिसके सिर पर हाथ रख देते हैं उसकी नैया पार हो जाती है, वो व्यक्ति चुनाव जीत जाता है जिसके साथ “जय” मजबूती के साथ खड़े रहते है। राजनीति के शुरुवाती दौर में पहलवान सिंह जैसे मजबूत व्यक्ति को हराकर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष बनने के बाद जय चौबे कभी रुके नहीं, अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को प्राप्त करने के लिए जब उन्होंने ईमानदारी से जब प्रयास करना शुरू किए तब वो जिला पंचायत सदस्य फिर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष बने, साल 2005 में खलीलाबाद ब्लॉक के प्रमुख बने।जय चौबे प्रमुख संघ के जिलाध्यक्ष भी रहे।
उस दौर से ही जय चौबे की पहचान एक बाहुबली के रूप में की जाने लगी थी, अपने इसी बाहुबल का प्रयोग करते हुए उन्होंने साल 2010 में अपने छोटे भाई राकेश चतुर्वेदी को नाथनगर ब्लॉक का प्रमुख बनाया। हालांकि 2012 के विधान सभा चुनाव में उन्हे हार का सामना करना पड़ा, पर साल 2012 की गलतियों से सबक लेते हुए जय चौबे ने बड़े ही मजबूती के साथ राजनीति में कमबैक किया और साल 2017 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विधायक पीस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर अयूब और बीएसपी के मशहूर आलम चौधरी को बुरी तरह से हरा कर खलीलाबाद के विधायक बने। खुद विधायक बनने के बाद जय चौबे ने अपने राजनैतिक शिष्य श्याम सुंदर वर्मा को शहर का चेयरमैन बनाया, बीते जिला पंचायत चुनाव में बलराम यादव को सदस्य बनाने के साथ उन्हे जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने वाले जय चौबे ने अपने एक और शिष्य मुमताज अहमद को जिले के सबसे बड़े ब्लॉक सेमरियावा की सल्तनत सौंपी। बीजेपी में रहकर बीजेपी नेताओं की लाख कोशिशों पर पानी फेरते हुए उन्होंने जिस तरह से बलराम को जिला पंचायत अध्यक्ष और मुमताज की मां को प्रमुख बनाया उससे आज हर कोई वाकिफ है, पार्टी से बगावत कर अपने दो शिष्यों को स्थापित करने वाले जय चौबे साल 2022 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले बीजेपी छोड़ सपा का दामन थाम लिया, हालांकि इस चुनाव में उन्हे हार का मुंह देखना पड़ा, योगी मोदी लहर में जिस मजबूती के साथ जय चौबे ने विधानसभा चुनाव लड़ा वो एक मिसाल बन गया, मामूली अंतरों से भले ही जय चौबे हार गए पर जनता के दिलों को जीत लिए, जनता खुद ही समीक्षा कर ये कहने लगी थी कि यदि उन्हे समय पर सपा ने टिकट दिया होता तो दूसरी बार वो खलीलाबाद के विधायक बन जाते। खैर जो बीत गया सो बीत गया, 22 के विधान सभा चुनाव के बाद एक बार फिर जब चुनावी बयार चली यानी नगर निकाय का चुनाव आया तब उन्होंने बीजेपी के किले में सेंधमारी कर जिस तरह से जगत जायसवाल को शहर का चेयरमैन बनाया। उसे देख लब्बोलुआब यही कहा जा सकता है कि जय हैं तो सब मुमकिन है। जय ने जिसके सिर पर भी हाथ रखा वो चुनाव जीत गया।

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