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नगर निकाय चुनाव में BJP जिलाध्यक्ष जगदम्बा की नाकामी!  - Satyamev Times Media Network.
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हमारी जुबानी_"मन की बात"
जिस तरह नदी में डूबती नैया को एक बेहतर खेवनहार की जरूरत होती है उसी तरह राजनैतिक दल भी उस चेहरे को पार्टी का खेवनहार बनाते हैं जो पार्टी के लिए कुछ कर सकें। सत्तारूढ़ दल बीजेपी को लगा होगा कि जगदम्बा श्रीवास्तव पार्टी के लिए खेवनहार बन सकते हैं इसलिए शीर्ष नेतृत्व ने उन्हे संतकबीरनगर जिले की कमान सौंपी। विधान सभा चुनाव के पहले जिलाध्यक्ष बनाए गए जगदम्बा श्रीवास्तव एक ऐसे एक्सीडेंटल जिलाध्यक्ष बने जिनके नाम एक अनचाही उपलब्धि बीते विधानसभा चुनाव के बीतने के बाद लगी। जिले के तीनों सीटों पर जब कमल खिला तो लोगों ने समझा कि ये सब जगदम्बा के कुशल नेतृत्व का परिणाम है, पर हकीकत में ऐसा कुछ नही रहा, जिले के तीनों प्रत्याशी मोदी युग लहर के कारण अथवा खुद के धन बल के प्रभाव से चुनाव जीते। युवा मोर्चे के जिलाध्यक्ष बनने से लेकर महामंत्री बनने तक का जगदम्बा श्रीवास्तव का सफर दूसरों की कृपा पात्र से ही रहा। जिला अध्यक्ष भी बने तो उसमे भी प्रदेश के एक प्रभावशाली व्यक्ति का हाथ रहा, स्थानीय स्तर पर जब जगदम्बा उपेक्षित थे तब जिले के एक सौम्य और मृदुभाषी स्वभाव के धनी व्यक्ति ने बेटे की राजनैतिक कैरियर को उज्ज्वल बनाने की खातिर जगदम्बा को अपने कंधो पर ढोया और खुद का खर्च कर उन्हे इस आशा में जिलाध्यक्ष बनवाया कि वो बेटे को विधानसभा टिकट दिलाने में मदद करेंगे। पर ऐसा कुछ उस व्यक्ति के लिए जगदम्बा कर नही पाए, अवसरवादिता के माहिर खिलाड़ी जगदम्बा समय के साथ पलटीबाज निकले। स्वयं के लाभ के चक्कर में जगदम्बा ने अपनी राजनीति के खत्म होते कैरियर को बचाने की सिर्फ कोशिश की। उन्हे जरूरत थी ऐसे व्यक्ति की जो धनबल और जुगड़वाला हो, जो उनकी मदद कर सके। 2022 के पहले गुमनामी के दौर में जीने वाले जगदम्बा को जिसने सहारा दिया उसके भी जगदम्बा नही रहे। जगदम्बा को जिन्होंने मदद किया उनकी जगदम्बा ने कभी मदद करने की नही सोंची। मदद करने वाले के लिए वो कोई काम न आकर जगदम्बा धनबली नेताओं के साथ हो चले। खैर 2022 में मोदी योगी लहर के कारण पार्टी प्रत्याशियों की जीत उनके लिए अनुकूल रहा पर अपने किचेन कैबिनेट के सहारे नगर निकाय चुनाव में पार्टी का परचम लहराने में जगदम्बा नाकाम रहे। निष्ठावान कार्यकर्ताओं की बजाय अपने उन चहेतों को जिला कमेटी का अंग बनाया जो तमाम दलों से होकर अवसर की तलाश में बीजेपी की गोद में आए थे। इन्ही अनुभवहीन किचेन कैबिनेट के सहारे जगदम्बा नगर निकाय चुनाव को फतह करने की कोशिश कर खुद की मजबूत उपस्थिति शीर्ष नेतृत्व के समक्ष दर्ज कराना चाहते थे। सूत्रों के मुताबिक नगर निकाय चुनाव के टिकट के आवंटन के पीछे छत आवंटन का कर्ज सदर सीट पर उतारने के चक्कर में उन्होंने ऐसे को पुनः मौका दिया जिसके खिलाफ जनता खड़ी थी, सदर विधायक की यहां एक न चली वो भी जिलाध्यक्ष के निर्णय पर सहमति जताकर सदर सीट समेत मगहर की सीट पर कमल खिलाने के लिए जी जान से जुट गए, रात 02 बजे तक जनसंपर्क करने के बाद फिर सुबह 05 बजे जनता के बीच पहुंचने वाले विधायक दोनो प्रत्याशियों को जीत भले ही न दिला सके पर उनकी मेहनत को हर किसी ने सराहा। अगर जिला अध्यक्ष ने सर्वे के मुताबिक शीर्ष नेतृत्व के सामने योग्य उम्मीदवारों की सूची फाइनल की होती तो आज रिजल्ट बीजेपी के पक्ष में जाता। जिले की 01 नगर पालिका समेत 07 अन्य नगर पंचायत सीटों के मुकाबले बीजेपी ने जिन दो सीटों पर जीत दर्ज किया उसमे हरिहरपुर नगर पंचायत और हैसर की सीट है। हरिहरपुर से तो स्वयं मोदी योगी भी निर्वाचित कैंडिडेट पप्पू शाही के सामने चुनाव लड़ते तो शायद वो भी हार जाते, क्योंकि पप्पू की पहचान एक विकास पुरुष के रूप में की जाती है जिन्हे वहां की जनता हाथों हाथ लेती है, कमोवेश कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हैसर में भी रही, हैसर प्रत्याशी संवेदना के रथ पर सवार थी, उनके पति विभिन्न दलों से कई बार विधानसभा चुनाव हार कर अपना सब कुछ लुटा चुके थे इसलिए जनता ने दया और सहानुभूति दिखाते हुए इस सीट पर कमल खिलाने का कार्य किया। वहीं मेंहदावल क्षेत्र की 04 सीटों जिसपर जीत दिलाने की जिम्मेदारी जिलाध्यक्ष पर थी उसमे वो खरे नहीं उतरे जिसके कारण नतीजा यह रहा कि मेंहदावल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी नगर पंचायत सीटों पर पार्टी खुद की इज्जत नहीं बचा पाई। बीजेपी सभी जगहों पर तीसरे स्थान पर रही। नगर निकाय चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पार्टी की हार का ठीकरा जिलाध्यक्ष पर सबसे ज्यादे फूटा। लोगों ने, कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष को ही हार के जिम्मेदार ठहराया, फिर चाहे वो सदर की सीट रही या मेंहदावल, बेलहर अथवा धर्मसिंहवा की सीट रही हो, सभी सीटों पर निष्ठावान कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष की कार्यप्रणाली से आहत होकर पार्टी से बगावत किए और चुनाव लड़ गए जिसके कारण जनता में ये गलत संदेश गया कि बीजेपी हार जाएगी, जनता के सामने कोई विकल्प नहीं बचा था इसलिए जनता ने निष्पक्ष भाव रख अन्य प्रत्याशियों को वोट किया जो बीजेपी के लिए प्रतिकूल रहा। पार्टी की यहां यदि बड़ी हार हुई तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ जिलाध्यक्ष की भूमिका ही मुझे समझ में आती है क्योंकि माननीयों ने तो दूसरे चेहरों के लिए शीर्ष नेतृत्व से सिफारिस की थी जिसपर पार्टी के आला कमानो ने कोई विचार नहीं किया, ऐसी स्थिति में भला माननीय गण कर भी क्या सकते थे? उनके सामने एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ समंदर था जिसमे गिरकर अथवा डूबकर वो जान तो वो दे नही सकते थे इसलिए पार्टी के निर्णयों के प्रति विश्वास जताकर घोषित उम्मीदवारों की जीत के लिए जतन करने लगे लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। ऐसे में बीजेपी यदि समीक्षा करे तो हार के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ जगदम्बा श्रीवास्तव ही है जिनके ऊपर कार्यकर्ताओं ने दबी जुबान में ये आरोप लगाया कि धन अर्जन के कारण जिलाध्यक्ष ने चेयरमैन और सभासद पदों के लिए चयनित प्रत्याशियों से धनुगाही कर उन्हे टिकट दिया। हालिया सूत्रों ने ये भी जानकारी दी कि नगर क्षेत्र के स्टेशन रोड पर स्थित एक प्रोजेक्ट के तहत तैयार हुई दुकानों की छत आवंटन के बदले जिलाध्यक्ष ने कैंडिडेट को रिपीट करने में मदद की। उक्त दोनों छत जिलाध्यक्ष जी की बेटियों के नाम करने वाले शक्स के एहसान तले दबे जिलाध्यक्ष ने पार्टी हित की न सोच कर खुद का हित साधा जिसके चलते जिले की हॉट शीट पर बीजेपी की बड़ी हार हुई। गैर दलों के लोगों को और अनुभव हीन व्यक्तियों को अपना किचेन कैबिनेट बनाने वाले जिलाध्यक्ष जगदम्बा श्रीवास्तव को शायद सजातीय गणना का भी ज्ञान नहीं है, अगर उन्हे जातिगत वोटरों का ध्यान रहता तो वो शहर और मेंहदावल में कमल खिला सकते थे। साल 2000 में युवा मोर्चे के अध्यक्ष के रूप में पार्टी से जुड़े जगदम्बा को कभी पार्टी हित का ख्याल न रहकर अपने पद और अपने लाभ की चिंता रही, कई बार महामंत्री भी रह चुके जगदम्बा श्रीवास्तव जब जिलाध्यक्ष बने तब अगर उन्होंने सजातीय वोटरों को ही साधा होता तो खलीलाबाद और मेंहदावल समेत मगहर में कमल खिल सकता था लेकिन पार्टी के विभिन्न पदों पर रहने के दौरान उन्होंने सजातीय लोगों की कोई सुधि नही ली जिसका नतीजा आज सबके सामने आया है, जगदम्बा जी ने शायद ही किसी कायस्थ की मदद की होगी। सजातीय वोटर्स इस बार अपनी इसी नाराजगी के कारण अपनी मूल पार्टी बीजेपी को वोट न कर सपा अथवा बीएसपी को वोट कर गए जिसके कारण सपा बीएसपी ने जिले की चार सीटों पर जीत दर्ज की वहीं एक अंजान पार्टी ने बेलहर में जीत हासिल की। अब वक्त आ गया है कि बीजेपी हाई कमान ऐसे जिलाध्यक्ष के कार्यों की समीक्षा करे, विभिन्न पदों पर रहते हुए जगदम्बा ने क्या क्या संपत्ति हासिल की है, क्या क्या अनुचित लाभ लिए है उसकी जांच करे और पूरी जिला इकाई को भंग कर किसी दूसरे के हाथ में पार्टी की कमान सौंपे।

नगर निकाय चुनाव में BJP जिलाध्यक्ष जगदम्बा की नाकामी! 

हमारी जुबानी_”मन की बात”
जिस तरह नदी में डूबती नैया को एक बेहतर खेवनहार की जरूरत होती है उसी तरह राजनैतिक दल भी उस चेहरे को पार्टी का खेवनहार बनाते हैं जो पार्टी के लिए कुछ कर सकें। सत्तारूढ़ दल बीजेपी को लगा होगा कि जगदम्बा श्रीवास्तव पार्टी के लिए खेवनहार बन सकते हैं इसलिए शीर्ष नेतृत्व ने उन्हे संतकबीरनगर जिले की कमान सौंपी। विधान सभा चुनाव के पहले जिलाध्यक्ष बनाए गए जगदम्बा श्रीवास्तव एक ऐसे एक्सीडेंटल जिलाध्यक्ष बने जिनके नाम एक अनचाही उपलब्धि बीते विधानसभा चुनाव के बीतने के बाद लगी। जिले के तीनों सीटों पर जब कमल खिला तो लोगों ने समझा कि ये सब जगदम्बा के कुशल नेतृत्व का परिणाम है, पर हकीकत में ऐसा कुछ नही रहा, जिले के तीनों प्रत्याशी मोदी युग लहर के कारण अथवा खुद के धन बल के प्रभाव से चुनाव जीते। युवा मोर्चे के जिलाध्यक्ष बनने से लेकर महामंत्री बनने तक का जगदम्बा श्रीवास्तव का सफर दूसरों की कृपा पात्र से ही रहा। जिला अध्यक्ष भी बने तो उसमे भी प्रदेश के एक प्रभावशाली व्यक्ति का हाथ रहा, स्थानीय स्तर पर जब जगदम्बा उपेक्षित थे तब जिले के एक सौम्य और मृदुभाषी स्वभाव के धनी व्यक्ति ने बेटे की राजनैतिक कैरियर को उज्ज्वल बनाने की खातिर जगदम्बा को अपने कंधो पर ढोया और खुद का खर्च कर उन्हे इस आशा में जिलाध्यक्ष बनवाया कि वो बेटे को विधानसभा टिकट दिलाने में मदद करेंगे। पर ऐसा कुछ उस व्यक्ति के लिए जगदम्बा कर नही पाए, अवसरवादिता के माहिर खिलाड़ी जगदम्बा समय के साथ पलटीबाज निकले। स्वयं के लाभ के चक्कर में जगदम्बा ने अपनी राजनीति के खत्म होते कैरियर को बचाने की सिर्फ कोशिश की। उन्हे जरूरत थी ऐसे व्यक्ति की जो धनबल और जुगड़वाला हो, जो उनकी मदद कर सके। 2022 के पहले गुमनामी के दौर में जीने वाले जगदम्बा को जिसने सहारा दिया उसके भी जगदम्बा नही रहे। जगदम्बा को जिन्होंने मदद किया उनकी जगदम्बा ने कभी मदद करने की नही सोंची। मदद करने वाले के लिए वो कोई काम न आकर जगदम्बा धनबली नेताओं के साथ हो चले। खैर 2022 में मोदी योगी लहर के कारण पार्टी प्रत्याशियों की जीत उनके लिए अनुकूल रहा पर अपने किचेन कैबिनेट के सहारे नगर निकाय चुनाव में पार्टी का परचम लहराने में जगदम्बा नाकाम रहे। निष्ठावान कार्यकर्ताओं की बजाय अपने उन चहेतों को जिला कमेटी का अंग बनाया जो तमाम दलों से होकर अवसर की तलाश में बीजेपी की गोद में आए थे। इन्ही अनुभवहीन किचेन कैबिनेट के सहारे जगदम्बा नगर निकाय चुनाव को फतह करने की कोशिश कर खुद की मजबूत उपस्थिति शीर्ष नेतृत्व के समक्ष दर्ज कराना चाहते थे। सूत्रों के मुताबिक नगर निकाय चुनाव के टिकट के आवंटन के पीछे छत आवंटन का कर्ज सदर सीट पर उतारने के चक्कर में उन्होंने ऐसे को पुनः मौका दिया जिसके खिलाफ जनता खड़ी थी, सदर विधायक की यहां एक न चली वो भी जिलाध्यक्ष के निर्णय पर सहमति जताकर सदर सीट समेत मगहर की सीट पर कमल खिलाने के लिए जी जान से जुट गए, रात 02 बजे तक जनसंपर्क करने के बाद फिर सुबह 05 बजे जनता के बीच पहुंचने वाले विधायक दोनो प्रत्याशियों को जीत भले ही न दिला सके पर उनकी मेहनत को हर किसी ने सराहा। अगर जिला अध्यक्ष ने सर्वे के मुताबिक शीर्ष नेतृत्व के सामने योग्य उम्मीदवारों की सूची फाइनल की होती तो आज रिजल्ट बीजेपी के पक्ष में जाता। जिले की 01 नगर पालिका समेत 07 अन्य नगर पंचायत सीटों के मुकाबले बीजेपी ने जिन दो सीटों पर जीत दर्ज किया उसमे हरिहरपुर नगर पंचायत और हैसर की सीट है। हरिहरपुर से तो स्वयं मोदी योगी भी निर्वाचित कैंडिडेट पप्पू शाही के सामने चुनाव लड़ते तो शायद वो भी हार जाते, क्योंकि पप्पू की पहचान एक विकास पुरुष के रूप में की जाती है जिन्हे वहां की जनता हाथों हाथ लेती है, कमोवेश कुछ ऐसी ही परिस्थितियां हैसर में भी रही, हैसर प्रत्याशी संवेदना के रथ पर सवार थी, उनके पति विभिन्न दलों से कई बार विधानसभा चुनाव हार कर अपना सब कुछ लुटा चुके थे इसलिए जनता ने दया और सहानुभूति दिखाते हुए इस सीट पर कमल खिलाने का कार्य किया। वहीं मेंहदावल क्षेत्र की 04 सीटों जिसपर जीत दिलाने की जिम्मेदारी जिलाध्यक्ष पर थी उसमे वो खरे नहीं उतरे जिसके कारण नतीजा यह रहा कि मेंहदावल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी नगर पंचायत सीटों पर पार्टी खुद की इज्जत नहीं बचा पाई। बीजेपी सभी जगहों पर तीसरे स्थान पर रही। नगर निकाय चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पार्टी की हार का ठीकरा जिलाध्यक्ष पर सबसे ज्यादे फूटा। लोगों ने, कार्यकर्ताओं ने जिलाध्यक्ष को ही हार के जिम्मेदार ठहराया, फिर चाहे वो सदर की सीट रही या मेंहदावल, बेलहर अथवा धर्मसिंहवा की सीट रही हो, सभी सीटों पर निष्ठावान कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष की कार्यप्रणाली से आहत होकर पार्टी से बगावत किए और चुनाव लड़ गए जिसके कारण जनता में ये गलत संदेश गया कि बीजेपी हार जाएगी, जनता के सामने कोई विकल्प नहीं बचा था इसलिए जनता ने निष्पक्ष भाव रख अन्य प्रत्याशियों को वोट किया जो बीजेपी के लिए प्रतिकूल रहा। पार्टी की यहां यदि बड़ी हार हुई तो इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ जिलाध्यक्ष की भूमिका ही मुझे समझ में आती है क्योंकि माननीयों ने तो दूसरे चेहरों के लिए शीर्ष नेतृत्व से सिफारिस की थी जिसपर पार्टी के आला कमानो ने कोई विचार नहीं किया, ऐसी स्थिति में भला माननीय गण कर भी क्या सकते थे? उनके सामने एक तरफ खाई तो दूसरी तरफ समंदर था जिसमे गिरकर अथवा डूबकर वो जान तो वो दे नही सकते थे इसलिए पार्टी के निर्णयों के प्रति विश्वास जताकर घोषित उम्मीदवारों की जीत के लिए जतन करने लगे लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। ऐसे में बीजेपी यदि समीक्षा करे तो हार के जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ जगदम्बा श्रीवास्तव ही है जिनके ऊपर कार्यकर्ताओं ने दबी जुबान में ये आरोप लगाया कि धन अर्जन के कारण जिलाध्यक्ष ने चेयरमैन और सभासद पदों के लिए चयनित प्रत्याशियों से धनुगाही कर उन्हे टिकट दिया। हालिया सूत्रों ने ये भी जानकारी दी कि नगर क्षेत्र के स्टेशन रोड पर स्थित एक प्रोजेक्ट के तहत तैयार हुई दुकानों की छत आवंटन के बदले जिलाध्यक्ष ने कैंडिडेट को रिपीट करने में मदद की। उक्त दोनों छत जिलाध्यक्ष जी की बेटियों के नाम करने वाले शक्स के एहसान तले दबे जिलाध्यक्ष ने पार्टी हित की न सोच कर खुद का हित साधा जिसके चलते जिले की हॉट शीट पर बीजेपी की बड़ी हार हुई। गैर दलों के लोगों को और अनुभव हीन व्यक्तियों को अपना किचेन कैबिनेट बनाने वाले जिलाध्यक्ष जगदम्बा श्रीवास्तव को शायद सजातीय गणना का भी ज्ञान नहीं है, अगर उन्हे जातिगत वोटरों का ध्यान रहता तो वो शहर और मेंहदावल में कमल खिला सकते थे। साल 2000 में युवा मोर्चे के अध्यक्ष के रूप में पार्टी से जुड़े जगदम्बा को कभी पार्टी हित का ख्याल न रहकर अपने पद और अपने लाभ की चिंता रही, कई बार महामंत्री भी रह चुके जगदम्बा श्रीवास्तव जब जिलाध्यक्ष बने तब अगर उन्होंने सजातीय वोटरों को ही साधा होता तो खलीलाबाद और मेंहदावल समेत मगहर में कमल खिल सकता था लेकिन पार्टी के विभिन्न पदों पर रहने के दौरान उन्होंने सजातीय लोगों की कोई सुधि नही ली जिसका नतीजा आज सबके सामने आया है, जगदम्बा जी ने शायद ही किसी कायस्थ की मदद की होगी। सजातीय वोटर्स इस बार अपनी इसी नाराजगी के कारण अपनी मूल पार्टी बीजेपी को वोट न कर सपा अथवा बीएसपी को वोट कर गए जिसके कारण सपा बीएसपी ने जिले की चार सीटों पर जीत दर्ज की वहीं एक अंजान पार्टी ने बेलहर में जीत हासिल की। अब वक्त आ गया है कि बीजेपी हाई कमान ऐसे जिलाध्यक्ष के कार्यों की समीक्षा करे, विभिन्न पदों पर रहते हुए जगदम्बा ने क्या क्या संपत्ति हासिल की है, क्या क्या अनुचित लाभ लिए है उसकी जांच करे और पूरी जिला इकाई को भंग कर किसी दूसरे के हाथ में पार्टी की कमान सौंपे।

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