संतकबीरनगर जिले के सर्वाधिक चर्चित समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉक्टर उदय प्रताप चतुर्वेदी के पैतृक गांव यानी महुली थाना क्षेत्र के भिठहां गांव में आयोजित संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन का शुभारंभ हनुमान चालीसा पाठ के साथ हुआ। कथा आयोजक डॉक्टर उदय प्रताप चतुर्वेदी के साथ कथा की मुख्य यजमान यानी उनकी माता श्रीमती चंद्रावती देवी के साथ उनके भाई राकेश चतुर्वेदी, रत्नेश चतुर्वेदी और परिवार के सभी सदस्यों ने भगवान की आरती के साथ कथा वाचक का आशीर्वाद लेते हुए कथा वाचक को जहां अंगवस्त्र के साथ दान दक्षिणा दी वहीं अन्य आचार्य ब्राह्मणों को अंगवस्त्र और दान दक्षिणा दी।
कथा के तीसरे दिन भगवान श्री कृष्ण भक्तों का भिठहा गांव में जमावड़ा देखने को मिला। तीसरे दिन स्थानीय भक्तों के साथ उत्तरप्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधि मंडल के प्रदेश मंत्री तथा अपना दल एस व्यापार मंच के प्रदेश अध्यक्ष पुष्कर चौधरी पहुंचे थे वहीं व्यापारी नेता सतीश सिंह के साथ उनके समर्थक भी इस कथा को सुनने पहुंचे थे। गोविंद चले आओ गोपाल चले आओ जैसे कर्णप्रिय भजनों की प्रस्तुति के साथ शुरू हुए तीसरे दिन की श्रीमद भागवत कथा की शाम हजारों की संख्या में मौजूद भक्त भक्ति रस में गोते लगाते नजर आए। तीसरे दिन की कथा की शुरुवात भीष्म पितामह के उस मांग से शुरू हुई जब वो शत सैया पर लेटे भगवान श्री कृष्ण से यही प्रार्थना कर रहे थे कि मेरी एक पुत्री है जिसको आप अपना लीजिए। यह प्रसंग सुनकर भगवान श्री कृष्ण बोले कि आप तो ब्रह्मचारी हो फिर आपकी पुत्री कौन है? लाइए अपनी पुत्री को मेरे सामने मैं उससे भी विवाह कर लूंगा क्योंकि मैं पहले भी कई विवाह कर चुका हूं। भगवान श्री कृष्ण की इस बात को सुन भीष्म पितामह ने कहा कि मेरी पुत्री मेरी बुद्धि है मेरी मति है जिससे आप विवाह कर लिजिए। भीष्म पितामह की इस बात पर भगवान खुश होकर जब आशीर्वाद दिए तब भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया। कथा के दौरान कथा वाचक ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने महाभारत के अंत पर धीतराष्ट्र और गांधारी का प्रसंग सुनाते हुए महात्मा विदुर के उपदेशों का भी जिक्र किया। कथावाचक ने कहा कि भगवान की कथा सुनने से सभी व्याधियां दूर होती है। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा बड़े से बड़े पापियों को भी पापमुक्त कर देती है। जो व्यक्ति भागवत कथा आत्मसात कर लेता है, वह सांसारिक दुखों से मुक्त हो जाता है। कथावाचक ने कहा कि जीवन में यदि मान, बड़ा पद या प्रतिष्ठा मिला जाए तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर भलाई के कार्य करना चाहिए, लेकिन यदि उसका जीवन में किंचित मात्र भी अभिमान हुआ तो वह पाप का भागीदार बना देता है। उन्होंने कहा कि अहंकार से भरे राजा परीक्षित ने जंगल में साधना कर रहे शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया। परिणामस्वरूप राजा परीक्षित को एक सप्ताह में मृत्यु का शाप मिला। जब परीक्षित ने अपने सिर से स्वर्ण मुकुट को उतारा तो उन पर से कलियुग का प्रभाव समाप्त हो गया और उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।कथावाचक ने कहा कि जब जब भगवान के भक्तों पर विपदा आती है तब भगवान उनके कल्याण के लिए सामने आते हैं। परीक्षित को भवसागर से पार लगाने के लिए भगवान शुकदेव के रूप में प्रकट हो गए और श्रीमद्भागवत कथा सुनाकर परीक्षित को अपने चरणों में स्थान प्रदान किया। उन्होंने महाभारत के कई प्रसंग भी सुनाए। कर्ण और भगवान श्रीकृष्ण के बीच संवाद को बताते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान जब कर्ण की भगवान कृष्ण से चर्चा हुई तो कर्ण ने कहा कि मृत्यु के बाद ऐसी जगह मेरा दाह संस्कार हो जहां आज तक किसी का नहीं हुआ। भगवान ने उसकी मृत्यु के बाद कर्ण का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया। कृष्ण और विदुर का प्रसंग भी सुनाया गया।
कथावाचक ने कहा कि नारायण की भक्ति में ही परम आनंद मिलता है। उसकी वाणी सागर का मोती बन जाता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं। वासनाओं का त्याग करके ही प्रभु से मिलन संभव है। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वासना को वस्त्र की भांति त्याग देना चाहिए। भागवत कथा का जो श्रवण करता है भगवान का आशीर्वाद बना रहता है।