07 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन भिठहां गांव में लगी रही भक्तों की भारी भीड़
पूर्वांचल के मालवीय कहे गए स्वर्गीय पंडित सूर्य नारायण चतुर्वेदी की स्मृति में 07 दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा आयोजन के दौरान कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने जहां पहले दिन भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि मृत्यु को जानने से मृत्यु का भय मन से मिट जाता है, जिस प्रकार परीक्षित ने भागवत कथा का श्रवण कर अभय को प्राप्त किया, वैसे ही भागवत जीव को अभय बना देती है। वहीं कथा के दूसरे दिन उन्होंने सती प्रसंग ध्रुव चरित्र का वर्णन करते हुए प्रभु चरित्र का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि उनके शील गुण से प्रसन्न होकर भगवान ने प्रभुजी को उनकी रूचि के अनुसार दस हजार कानों की शक्ति प्राप्त करने का वरदान दिया, जिससे वे अर्धनिश प्रभु का गुणगान सुनते रहें। इसके बाद ऋषभ देव के चरित्र वर्णन करते हुए कहा कि मनुष्य को ऋषभ देव जी जैसा आदर्श पिता होना चाहिए। जिन्होंने अपने पुत्रों को समझाया कि इस मानव शरीर को पाकर दिव्य तप करना चाहिए, जिससे अंत:करण की शुद्धि हो तभी उसे अनंत सुख की प्राप्ति हो सकती है। भगवान को अर्पित भाव से किया गया कर्म ही दिव्य तप है। आपको बता दें कि भिठहां गांव में आयोजित सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के आयोजनकर्ता डॉक्टर उदय प्रताप चतुर्वेदी है।जो शिक्षा क्षेत्र के साथ समाजसेवा क्षेत्र में तमाम उल्लेखनीय योगदान देने के नाम पर हमेशा मीडिया की सुर्खियों में रहते है। सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी और उनका पूरा परिवार धर्म कर्म के कार्यों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने के नाम पर प्रसिद्ध है। शिवरात्रि के महीना हो या श्री राम नवमी अथवा कहीं यज्ञ हो या भजन कीर्तन ऐसे हर धार्मिक कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले इस परिवार द्वारा जनकल्याण की भावना को लेकर अपने पैतृक निवास स्थान भिठहा गांव में सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया गया है। कथा के पहले दिन पूजन पाठ और आरती के बाद अपनी मां यानी श्रीमद भागवत कथा की मुख्य यजमान श्रीमती चंद्रावती देवी के साथ कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी का आशीर्वाद प्राप्त करने वाले सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी ने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ कथा वाचक के आशीर्वाद प्राप्ति के साथ ही उन्हें दान दक्षिणा देकर जन कल्याण की कामना भगवान श्री हरि विष्णु से की। संगीतमयी कथा का प्रारंभ गणेश वंदना, हनुमान चालीसा और भगवान श्री कृष्ण के भजनों से हुआ। इन भजनों पर उपस्थित भक्त भक्ति रस में गोते लगाते दिखे। संगीतमयी कथा के पहले दिन कथा वाचक पंडित ज्ञान चंद्र द्विवेदी ने कहा कि संसार में भगवान कृष्ण ही सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं। भगवान के चरणों में जितना समय बीत जाए उतना अच्छा है। इस संसार में एक-एक पल बहुत कीमती है। जो बीत गया सो बीत गया। इसलिए जीवन को व्यर्थ में बर्बाद नहीं करना चाहिए। भगवान द्वारा प्रदान किए गए जीवन को भगवान के साथ और भगवान के सत्संग में ही व्यतीत करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भागवत प्रश्न से प्रारंभ होती है और पहला ही प्रश्न है कि कलयुग के प्राणी का कल्याण कैसे होगा। इसमें सतयुग, त्रेता और द्वापर युग की चर्चा ही नहीं की गई है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि बार-बार यही चर्चा क्यों की जाती है, अन्य किसी की क्यों नहीं। इसके कई कारण हैं जैसे अल्प आयु, भाग्यहीन और रोगी। इसलिए इस संसार में जो भगवान का भजन न कर सके, वह सबसे बड़ा भाग्यहीन है। भगवान इस धरती पर बार-बार इसलिए आते हैं ताकि हम कलयुग में उनकी कथाओं में आनंद ले सकें और कथाओं के माध्यम से अपना चित्त शुद्ध कर सकें। व्यक्ति इस संसार से केवल अपना कर्म लेकर जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो। भाग्य, भक्ति, वैराग्य और मुक्ति पाने के लिए भगवत की कथा सुनो।