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उत्तरप्रदेश के संतकबीरनगर जिले की सियासत का एक बड़ा नाम - दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे...! जिसके नाम के आगे दिग्विजय और पीछे जय हो तो उसका पराजय भला कैसे हो सकता है। विषम परिस्थितियों को भी अनुकूल परिस्थितियों में पहुंचाने वाले जिस शख्स की बात हम यहां कर रहे हैं, उनका नाम तो हम पहले ही बता चुके है, उनका नाम है दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे!
पद -पूर्व सदर विधायक। शिक्षा - कंप्यूटर साइंस से बीटेक।
मूल निवास स्थान - ग्राम भिठहां थाना महुली जिला संतकबीरनगर।
राजनीति में कदम - वर्ष 1998......
पहली उपलब्धि - उस वक्त के दिग्गज नेता माने जाने वाले पूर्व विधायक पहलवान सिंह को मात देकर साल 2000 में जिला पंचायत उपाध्यक्ष बनना।
अपने राजनैतिक शुरुवात में दिग्गज नेता को पटखनी देने के बाद पूर्व विधायक जय चौबे फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखे। बेबाक छवि के साथ जिले की राजनीति में साउथ इंडियन फिल्मों जैसा ग्लैमर सीन क्रिएट करने वाले जय चौबे लगातार सफलता की सीढियों को जब छूना शुरू किए तब खुद की राजनीति तो सफल ही किया, साथ ही जिनके साथ वो खड़ा हुए उनकी भी चुनावी वैतरणी को पार किया। वर्ष 2005 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खलीलाबाद ब्लॉक के प्रमुखी चुनाव में उतरे जय चौबे का सामना किसी ऐरे गेरे व्यक्ति के सामने नहीं था, उनका सामना पूर्व बाहुबली सांसद माने जाने वाले स्वर्गीय भालचंद यादव से था। लेकिन इस चुनाव में अपनी कुशल रणनीतिक सूझबूझ की वजह से जय चौबे को जीत मिली और वो खलीलाबाद के ब्लॉक प्रमुख बने। इसके साथ ही जब ब्लॉक प्रमुख एसोसिएशन का चुनाव हुआ तब सर्वसम्मति से उन्हे प्रमुख संघ का जिलाध्यक्ष चुन लिया गया। प्रमुखी के इसी कार्यकाल के दौरान साल 2008 के उपचुनाव में जय चौबे से मदद मांगने पहुंचे वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव हारे पूर्वांचल के बाहुबली परिवार के बेटे कुशल तिवारी को उन्होंने उपचुनाव में जीत दिलाई। पूर्व सांसद भालचंद यादव इस उपचुनाव में यदि हारे थे तो उसके पीछे सिर्फ जय चौबे का ही हाथ माना जाता है। उपचुनाव में कुशल तिवारी के राइट में चलने वाले जय चौबे ने फिर 2009 के आम चुनाव में कुशल का साथ दिया जिसके चलते कुशल तिवारी पुनः सांसद बने। वर्ष 2010 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपने छोटे भाई राकेश चतुर्वेदी को नाथनगर ब्लॉक का प्रमुख बनाने वाले जय चौबे ने एक बार बाहुबली माने जाने वाले पूर्व सांसद भालचंद यादव को यहां पटखनी दी थी।साल 2011 में कुशल तिवारी के साथ कुछ मनमुटाव के चलते अलग हुए जय चौबे जब बीजेपी में शामिल हुए तब बीजेपी ने उन्हे 2012 में टिकट भी दिया लेकिन कुछ भितरघातियों और जयचंदो की वजह से वो चुनाव हार गए। 2012 में समाजवादी पार्टी की लहर चल रही थी, बाबजूद सपा यहां से तीसरे पायदान पर रही। वहीं बीजेपी प्रत्याशी रहे जय चौबे ने पीस पार्टी को कड़ी टक्कर तो दी पर चुनाव जीत नही पाए। 2012 बीता, जय भले ही इस चुनाव को हार गए पर पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करते रहे। इसी दरमियान पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे शरद त्रिपाठी जिले में आए और जय चौबे के किस्से और उनकी मजबूत राजनैतिक पकड़ को देख अपने करीब लाए। 2014 में जब लोकसभा चुनाव आया तब शरद त्रिपाठी को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया। उम्मीदवारी हासिल करने वाले शरद त्रिपाठी ने जय चौबे को अपने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी जब दी तब जय चौबे ने इसे सहर्ष स्वीकार करते हुए उनसे ये वादा किया कि 2014 में जीत बीजेपी यानी आपकी ही होगी। जय चौबे ने जो शरद त्रिपाठी से कहा वही हुआ भी। 2014 में सपा प्रत्याशी पूर्व सांसद भालचंद यादव की जय चौबे के आगे एक न चली और वो बुरी तरह से हारे और शरद त्रिपाठी चुनाव जीत पहली बार जिले के सांसद बने। पार्टी के प्रति इसी निष्ठा और ईमानदारी को देख बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जय चौबे को 2017 के पुनः सदर सीट से उम्मीदवार बनाया जिसमे उन्हे बड़ी जीत मिली। 2017 में बीजेपी से चुनाव जीतने के बाद जय चौबे कभी धर्म आधारित राजनीति को बढ़ावा न देकर प्रधानमंत्री मोदी की मंशा सबका साथ सबका विकास को सफल बनाने में जुटे रहे। बीजेपी विधायक रहने के बाबजूद जिस तेजी के साथ उनकी लोकप्रियता अल्पसंख्यक समुदाय के बीच बढ़ी उसने ये साबित किया कि जय चौबे सिर्फ जनकल्याण और विकास आधारित राजनीति पर ही काम करते है। अब बात साल 2019 की करते है जब बीजेपी ने मौजूदा सांसद इंजीनियर प्रवीण निषाद को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनाव के चंद दिनों पहले ही टिकट घोषणा के बाद खुद बीजेपी प्रत्याशी प्रवीण और उनके पिता निषाद पार्टी अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद इस बात की चिंता में डूबे थे कि इतने कम समय में जीत कैसे मिलेगी? पिता पुत्र की इन्ही शंकाओं को दूर करने के साथ उनको चुनाव जितवाने में अहम रोल अदा करने वाले जय चौबे को पिता पुत्र कभी भूले नहीं। इस दौरान जब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का वक्त आया तब टिकट बंटवारे को लेकर जय चौबे की पार्टी से दूरी बनने लगी, जय चौबे की मंशा थी की कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बलराम यादव की बनाया जाय मुस्लिम बाहुल्य इलाके तप्पा उजियार यानी सेमरियावा से पूर्व प्रमुख मुमताज अहमद को टिकट दिया जाय। जिसपर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जब इनकार किया तब उन्होंने विषम परिस्थितियों के बाबजूद अपने शिष्यों को समाजवादी पार्टी से टिकट दिलाकर दोनो सीटों पर सीधी दर्ज की। बलराम और मुमताज की मां की जीत ने फिर ये संदेश दिया कि जहां जय है वहां विजय है। खैर बीजेपी से नाराज होकर जब जय चौबे ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा तब सपा ने उनकी प्रतिभा को पहले पहचाना नहीं और 2022 के विधान सभा चुनाव का टिकट पूर्व विधायक अब्दुल कलाम को दे दिया। किंतु जैसे ही ये रिपोर्ट पार्टी आलाकमान के पास पहुंची कि पूर्व विधायक अब्दुल कलाम हार जायेंगे वैसे ही उनका टिकट काट सपा ने जय चौबे को अपना उम्मीदवार बनाया। चुनाव के कुछ ही दिन पहले टिकट पाना और जिसका टिकट कटा उसका रोना तथा कोर वोटर्स का आम आदमी पार्टी के साथ चले जाना ही 2022 में जय की हार का कारण बना। खुद की हार के बाबजूद बिना विचलित हुए जय चौबे निरंतर समाजवादी पार्टी का जनाधार जिले में बढ़ाते रहे, समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की मदद के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं के सुख दुख का ख्याल रखने वाले जय चौबे को इस बात का भरोसा था कि पार्टी उनकी सेवा और ईमानदारी का फल देते हुए उन्हे 2024 का लोकसभा चुनाव लड़वायेगी। सर्वे रिपोर्ट भी जय चौबे के ही पक्ष में था किंतु एक बार फिर भितरघातियों और जयचंदो ने लखनऊ में पार्टी सुप्रीमो अखिलेश से कानाफूसी की उसके चलते जिताऊ माने जा रहे जय चौबे को टिकट देने की बजाय पार्टी ने उस घोड़े पर दांव लगा दिया जी खुद ही में बीमार चल रहा है। घर की प्रधानी न बचा पाने वाले और नगर निकाय के चुनाव में एक अनजान राजनैतिक दल से मात खाने वाले व्यक्ति से पराजय का सामना करने वाले को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने लोकसभा का टिकट दे दिया जिसके बाद जय चौबे समर्थकों में आक्रोश उपजा। तमाम सोच विचार के बाद पूर्व विधायक जय चौबे ने घर वापसी करना ही उचित समझा। लखनऊ में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने जब उन्हें बीजेपी की सदस्यता दिलाई तब बीजेपी खेमा उत्साहित हो गया, खासकर मौजूदा सांसद और उनके समर्थक। जिन्हे जय की क्षमता पर उसी तरह से यकीन है जिस तरह जय चौबे ने 2019 में प्रवीण को जीत दिलाई थी। लोगों का ये कहना भी है कि जहां जय है वहीं विजय है। जय हैं तो जिले में सब मुमकिन है। एक बार फिर जय चौबे जिस मनोयोग के साथ बीजेपी उम्मीदवार निवर्तमान सांसद इंजीनियर प्रवीण के साथ खड़े है उसे देख ये कहा जा सकता है कि बीजेपी यहां एक बार फिर से मजबूत स्थिति में पहुंच चुकी है। हार जीत के दावे तो हम नही कर सकते ।

जहां “जय” हैं, वहीं विजय है : ये हम नही बल्कि ये आंकड़े कहते हैं…!

 

उत्तरप्रदेश के संतकबीरनगर जिले की सियासत का एक बड़ा नाम – दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे…! जिसके नाम के आगे दिग्विजय और पीछे जय हो तो उसका पराजय भला कैसे हो सकता है। विषम परिस्थितियों को भी अनुकूल परिस्थितियों में पहुंचाने वाले जिस शख्स की बात हम यहां कर रहे हैं, उनका नाम तो हम पहले ही बता चुके है, उनका नाम है दिग्विजय नारायण चतुर्वेदी उर्फ जय चौबे!
पद -पूर्व सदर विधायक। शिक्षा – कंप्यूटर साइंस से बीटेक।
मूल निवास स्थान – ग्राम भिठहां थाना महुली जिला संतकबीरनगर।
राजनीति में कदम – वर्ष 1998……
पहली उपलब्धि – उस वक्त के दिग्गज नेता माने जाने वाले पूर्व विधायक पहलवान सिंह को मात देकर साल 2000 में जिला पंचायत उपाध्यक्ष बनना।
अपने राजनैतिक शुरुवात में दिग्गज नेता को पटखनी देने के बाद पूर्व विधायक जय चौबे फिर कभी पीछे मुड़कर नही देखे। बेबाक छवि के साथ जिले की राजनीति में साउथ इंडियन फिल्मों जैसा ग्लैमर सीन क्रिएट करने वाले जय चौबे लगातार सफलता की सीढियों को जब छूना शुरू किए तब खुद की राजनीति तो सफल ही किया, साथ ही जिनके साथ वो खड़ा हुए उनकी भी चुनावी वैतरणी को पार किया। वर्ष 2005 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खलीलाबाद ब्लॉक के प्रमुखी चुनाव में उतरे जय चौबे का सामना किसी ऐरे गेरे व्यक्ति के सामने नहीं था, उनका सामना पूर्व बाहुबली सांसद माने जाने वाले स्वर्गीय भालचंद यादव से था। लेकिन इस चुनाव में अपनी कुशल रणनीतिक सूझबूझ की वजह से जय चौबे को जीत मिली और वो खलीलाबाद के ब्लॉक प्रमुख बने। इसके साथ ही जब ब्लॉक प्रमुख एसोसिएशन का चुनाव हुआ तब सर्वसम्मति से उन्हे प्रमुख संघ का जिलाध्यक्ष चुन लिया गया। प्रमुखी के इसी कार्यकाल के दौरान साल 2008 के उपचुनाव में जय चौबे से मदद मांगने पहुंचे वर्ष 2004 में लोकसभा चुनाव हारे पूर्वांचल के बाहुबली परिवार के बेटे कुशल तिवारी को उन्होंने उपचुनाव में जीत दिलाई। पूर्व सांसद भालचंद यादव इस उपचुनाव में यदि हारे थे तो उसके पीछे सिर्फ जय चौबे का ही हाथ माना जाता है। उपचुनाव में कुशल तिवारी के राइट में चलने वाले जय चौबे ने फिर 2009 के आम चुनाव में कुशल का साथ दिया जिसके चलते कुशल तिवारी पुनः सांसद बने। वर्ष 2010 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपने छोटे भाई राकेश चतुर्वेदी को नाथनगर ब्लॉक का प्रमुख बनाने वाले जय चौबे ने एक बार बाहुबली माने जाने वाले पूर्व सांसद भालचंद यादव को यहां पटखनी दी थी।साल 2011 में कुशल तिवारी के साथ कुछ मनमुटाव के चलते अलग हुए जय चौबे जब बीजेपी में शामिल हुए तब बीजेपी ने उन्हे 2012 में टिकट भी दिया लेकिन कुछ भितरघातियों और जयचंदो की वजह से वो चुनाव हार गए। 2012 में समाजवादी पार्टी की लहर चल रही थी, बाबजूद सपा यहां से तीसरे पायदान पर रही। वहीं बीजेपी प्रत्याशी रहे जय चौबे ने पीस पार्टी को कड़ी टक्कर तो दी पर चुनाव जीत नही पाए। 2012 बीता, जय भले ही इस चुनाव को हार गए पर पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करते रहे। इसी दरमियान पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी के बेटे शरद त्रिपाठी जिले में आए और जय चौबे के किस्से और उनकी मजबूत राजनैतिक पकड़ को देख अपने करीब लाए। 2014 में जब लोकसभा चुनाव आया तब शरद त्रिपाठी को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया। उम्मीदवारी हासिल करने वाले शरद त्रिपाठी ने जय चौबे को अपने चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी जब दी तब जय चौबे ने इसे सहर्ष स्वीकार करते हुए उनसे ये वादा किया कि 2014 में जीत बीजेपी यानी आपकी ही होगी। जय चौबे ने जो शरद त्रिपाठी से कहा वही हुआ भी। 2014 में सपा प्रत्याशी पूर्व सांसद भालचंद यादव की जय चौबे के आगे एक न चली और वो बुरी तरह से हारे और शरद त्रिपाठी चुनाव जीत पहली बार जिले के सांसद बने। पार्टी के प्रति इसी निष्ठा और ईमानदारी को देख बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जय चौबे को 2017 के पुनः सदर सीट से उम्मीदवार बनाया जिसमे उन्हे बड़ी जीत मिली। 2017 में बीजेपी से चुनाव जीतने के बाद जय चौबे कभी धर्म आधारित राजनीति को बढ़ावा न देकर प्रधानमंत्री मोदी की मंशा सबका साथ सबका विकास को सफल बनाने में जुटे रहे। बीजेपी विधायक रहने के बाबजूद जिस तेजी के साथ उनकी लोकप्रियता अल्पसंख्यक समुदाय के बीच बढ़ी उसने ये साबित किया कि जय चौबे सिर्फ जनकल्याण और विकास आधारित राजनीति पर ही काम करते है। अब बात साल 2019 की करते है जब बीजेपी ने मौजूदा सांसद इंजीनियर प्रवीण निषाद को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनाव के चंद दिनों पहले ही टिकट घोषणा के बाद खुद बीजेपी प्रत्याशी प्रवीण और उनके पिता निषाद पार्टी अध्यक्ष डॉक्टर संजय निषाद इस बात की चिंता में डूबे थे कि इतने कम समय में जीत कैसे मिलेगी? पिता पुत्र की इन्ही शंकाओं को दूर करने के साथ उनको चुनाव जितवाने में अहम रोल अदा करने वाले जय चौबे को पिता पुत्र कभी भूले नहीं। इस दौरान जब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का वक्त आया तब टिकट बंटवारे को लेकर जय चौबे की पार्टी से दूरी बनने लगी, जय चौबे की मंशा थी की कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बलराम यादव की बनाया जाय मुस्लिम बाहुल्य इलाके तप्पा उजियार यानी सेमरियावा से पूर्व प्रमुख मुमताज अहमद को टिकट दिया जाय। जिसपर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने जब इनकार किया तब उन्होंने विषम परिस्थितियों के बाबजूद अपने शिष्यों को समाजवादी पार्टी से टिकट दिलाकर दोनो सीटों पर सीधी दर्ज की। बलराम और मुमताज की मां की जीत ने फिर ये संदेश दिया कि जहां जय है वहां विजय है। खैर बीजेपी से नाराज होकर जब जय चौबे ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा तब सपा ने उनकी प्रतिभा को पहले पहचाना नहीं और 2022 के विधान सभा चुनाव का टिकट पूर्व विधायक अब्दुल कलाम को दे दिया। किंतु जैसे ही ये रिपोर्ट पार्टी आलाकमान के पास पहुंची कि पूर्व विधायक अब्दुल कलाम हार जायेंगे वैसे ही उनका टिकट काट सपा ने जय चौबे को अपना उम्मीदवार बनाया। चुनाव के कुछ ही दिन पहले टिकट पाना और जिसका टिकट कटा उसका रोना तथा कोर वोटर्स का आम आदमी पार्टी के साथ चले जाना ही 2022 में जय की हार का कारण बना। खुद की हार के बाबजूद बिना विचलित हुए जय चौबे निरंतर समाजवादी पार्टी का जनाधार जिले में बढ़ाते रहे, समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की मदद के साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं के सुख दुख का ख्याल रखने वाले जय चौबे को इस बात का भरोसा था कि पार्टी उनकी सेवा और ईमानदारी का फल देते हुए उन्हे 2024 का लोकसभा चुनाव लड़वायेगी। सर्वे रिपोर्ट भी जय चौबे के ही पक्ष में था किंतु एक बार फिर भितरघातियों और जयचंदो ने लखनऊ में पार्टी सुप्रीमो अखिलेश से कानाफूसी की उसके चलते जिताऊ माने जा रहे जय चौबे को टिकट देने की बजाय पार्टी ने उस घोड़े पर दांव लगा दिया जी खुद ही में बीमार चल रहा है। घर की प्रधानी न बचा पाने वाले और नगर निकाय के चुनाव में एक अनजान राजनैतिक दल से मात खाने वाले व्यक्ति से पराजय का सामना करने वाले को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने लोकसभा का टिकट दे दिया जिसके बाद जय चौबे समर्थकों में आक्रोश उपजा। तमाम सोच विचार के बाद पूर्व विधायक जय चौबे ने घर वापसी करना ही उचित समझा। लखनऊ में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने जब उन्हें बीजेपी की सदस्यता दिलाई तब बीजेपी खेमा उत्साहित हो गया, खासकर मौजूदा सांसद और उनके समर्थक। जिन्हे जय की क्षमता पर उसी तरह से यकीन है जिस तरह जय चौबे ने 2019 में प्रवीण को जीत दिलाई थी। लोगों का ये कहना भी है कि जहां जय है वहीं विजय है। जय हैं तो जिले में सब मुमकिन है। एक बार फिर जय चौबे जिस मनोयोग के साथ बीजेपी उम्मीदवार निवर्तमान सांसद इंजीनियर प्रवीण के साथ खड़े है उसे देख ये कहा जा सकता है कि बीजेपी यहां एक बार फिर से मजबूत स्थिति में पहुंच चुकी है। हार जीत के दावे तो हम नही कर सकते ।

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