संतकबीरनगर
भारत की इस पवित्र धरती पर समय-समय अनेक संतों, महात्माओं, वीरों व सत्पुरुषों ने जन्म लिया है । एसे ही एक पुरुष हिन्दु मुश्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव जिन्होंने अपने अल्प जीवन मे वह कार्य किया जो सैकड़ो बर्षों मे संभव नही है ।
संतकबीरनगर जनपद के बघौली से आठ किलोमीटर पश्चिम सुरदहिया मे बाबा रामदेव के मंदिर पर रोजाना दूर -दूर से सैकडों की संख्या मे भक्त आकर पूजा पाठ करते हैं ।बाबा उनकी मनोकामना पूर्ण करते है ।नवरात्र में हजारों की संख्या मे हिन्दू मुश्लिम एक साथ पूजा पाठ करते है।
15 वीं. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी अराजक बनी हुई थी । ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चेत्र शुक्ला पंचमी संवत् 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया । संवत् 1425 में रामदेव जी महाराज ने पोकरण से 12 किलोमीटर उत्तर दिशा में एक गांव की स्थापना की जिसका नाम रूणिचा रखा । लोग आकर रूणिचा में बसने लगे । रूणिचा गांव बड़ा सुन्दर और रमणीय बन गया । भगवान रामदेव जी अतिथियों की सेवा में ही अपना धर्म समझते थे ।
बाबा ने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछुत का विरोध कर अछुतोद्वार का सफल आन्दोलन चलाया । हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था । सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाई रामसापीर पुकारते है ।
आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी को जीवित समाधी ले ली। पुजारी रामहित ने बताया सुबह शाम कृष्ण अवतार बाबा रामदेव की आरती होती हैं । जो भी भक्त सच्चे मन से बाबा से मन्नत मागते हैं। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। उपरी बाधा मंदिर पर पहुंच ते ही दूर हो जाती हैं।