गोरखपुर – जिले के पिपरौली ब्लॉक के भौवापार गांव में 25 अगस्त से ही कालाजार रोधी दवा का छिड़काव शुरू हो चुका है । बारिश के कारण यह कार्य दो दिन बाधित हुआ लेकिन 28 अगस्त से नियमित छिड़काव हो रहा है । जिला मलेरिया विभाग की टीम ने बीते शनिवार को छिड़काव कार्य का निरीक्षण भी किया । जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. अंगद सिंह ने बताया कि गांव के 180 घरों में छिड़काव का कार्य पूरा हो चुका है । इस कार्य में छह लोगों की ड्यूटी लगाई गयी है और तीन पंप लगाए गए हैं ।
डॉ. सिंह ने बताया कि भौवापार गांव के करीब 2000 घरों में रहने वाली करीब 10,000 की आबादी को कालाजार की बीमारी से दवा के छिड़काव के माध्यम से सुरक्षित किया जाएगा । इस कार्य में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और स्वयंसेवी संगठन पाथ भी तकनीकी सहयोग दे रहे हैं । गांव में 35 दिनों तक यह छिड़काव होगा । वर्ष 2019 में इस गांव में कालाजार का प्रवासी मरीज सामने आया था, इसलिए एहतियातन यहां लगातार तीन वर्षों तक दवा का छिड़काव होगा। छिड़काव कार्य से जुड़ी टीम को जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. अंगद सिंह, प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ. निरंकेश्वर राय, डब्ल्यूएचओ कोआर्डिनेटर डॉ. सागर और पाथ के प्रोग्राम मैनेजर डॉ. ज्ञान ने पिछले दिनों प्रशिक्षण भी दिया था ।
जिला मलेरिया अधिकारी ने शनिवार को निरीक्षण के दौरान छिड़कावकर्मियों को निर्देश दिया है कि शारीरिक दूरी का पालन करते हुए मॉस्क एवं ग्लब्स लगा कर छिड़काव करेंगे। बालू मक्खी जमीन से छह फीट की ऊंचाई तक उड़ सकती हैं। ऐसे में दवा का छिड़काव घर के अंदर तथा बाहर छह फीट तक कराना है। स्थानीय लोगों को बताया गया कि छिड़काव के बाद तीन माह तक छिड़काव स्थल पर पुताई नहीं होनी चाहिए।
डॉ. सिंह ने बताया कि कालाजार की वाहक बालू मक्खी के काटने के बाद मरीज बीमार हो जाता है। उसे बुखार होता है और रुक-रुक कर बुखार चढ़ता-उतरता है। लक्षण दिखने पर मरीज को चिकित्सक को दिखाना चाहिए। इस बीमारी में मरीज का पेट फूल जाता है। भूख कम लगती है। शरीर पर काला चकत्ता पड़ जाता है। कालाजार का इलाज काफी महंगा है और निजी क्षेत्र में इसके लिए एक लाख रुपये से ज्यादा का खर्च आता है, जबकि सरकारी अस्पताल में इसका इलाज निःशुल्क होता है ।
दवा छिड़काव के निरीक्षण के दौरान ही टीम भौवापार गांव में ही एक फाइलेरिया मरीज के घर पहुंची । टीम में शामिल सहायक मलेरिया अधिकारी राजेश चौबै और मलेरिया निरीक्षक प्रवीण पांडेय ने मरीज का पूरा विवरण लिया । फाइलेरिया के कारण हाथीपांव से जूझ रहे बुजुर्ग मरीज को बताया गया कि पैरों की सफाई करते रहना है । चोट आदि से बचाना है और ज्यादा देर तक पैर लटका कर नहीं रखना है ।
*घट जाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता*
प्रदेश के अपर निदेशक, मलेरिया और वेक्टर बोर्न डिजीज तथा कालाजार के राज्य कार्यक्रम अधिकारी डॉ. वी. पी. सिंह का कहना है कि वेक्टर जनित रोग कालाजार की वाहक बालू मक्खी कालाजार रोग के परजीवी लीशमेनिया डोनोवानी को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलाती है । बालू मक्खी कम रोशनी वाली और नम जगहों – जैसे कि मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों, जानवर बंधने के स्थान तथा नम मिट्टी में रहती है। कालाजार एंडेमिक जनपदों में यदि किसी व्यक्ति को दो सप्ताह से ज्यादा से बुखार हो और वह मलेरिया या अन्य उपचार से ठीक न हो तो उसे कालाजार हो सकता है । पूर्वी उत्तर प्रदेश के छह जनपद बलिया, कुशीनगर, देवरिया, गाज़ीपुर, सुल्तानपुर और वाराणसी कालाजार एंडेमिक जिले हैं । कालाजार उत्पन्न करने वाले परजीवी के संक्रमण से रोगी के शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता घट जाती है, जिसके कारण उसे दूसरे रोगों से संक्रमित होने की संभावना भी बढ़ जाती है ।