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प्रयागराज के बाघम्बरी मठ का कौशांबी से गहरा नाता, नरेंद्र गिरी की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे जमालमऊ के ग्रामीण_रिपोर्ट-राहुल भट्ट - Satyamev Times Media Network.
सत्यमेव टाइम्स में आपका स्वागत है     यूपी के कौशांबी में एक ऐसा गांव है। जिसका प्रयागराज की बाघम्बरी मठ से गहरा रिश्ता है। उसकी वजह यह है कि जिले के जमालमऊ गांव में मठ की लगभग 50 बीघे जमीन है। ग्रामीणों की माने तो अक्सर नरेंद्र गिरी महाराज का गांव में आना जाना लगा था। मठ की जमीन पर खेती भी होती है। यहीं से मठ के लिए अनाज आदि जाता है। जब भी महंत गांव आते थे तो ग्रामीण खुशी से झूम उठते थे। वह भी ग्रामीणों से काफी स्नेह रखते थे। उनकी मौत के बाद ग्रामीण काफी दुखी हैं। ग्रामीण महंत की मौत की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं। प्रयागराज के बाघम्बरी मठ के महंत एवं विश्व हिंदू अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी के भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में भक्त थे। इनकी ख्याति विश्व के कोने कोने में फैली थी। कौशांबी जिले के सिराथू तहसील अंतर्गत नेशनल हाईवे 2 से सटे जमालमऊ गांव से भी महंत नरेंद्र गिरी का गहरा नाता था। क्योंकि गांव में बाघम्बरी मठ की 50 बीघे के आसपास जमीन है। खतौनी में महंत नरेंद्र गिरी का नाम दर्ज है। जमीन में खेतीबारी तो होती ही है। इसके अलावा तमाम तरीके की बागवानी भी होती है। यहां से गेंहू, चावल एवं फल बाघम्बरी मठ जाता है। इसके अलावा यहां पर एक मंदिर भी है। ग्रामीणों की मानें तो समय-समय पर महंत नरेंद्र गिरी गांव आया करते थे। जैसे ही उनके गांव आने की खबर ग्रामीणों को होती थी तो वह खुशी से झूम उठते थे। क्योंकि महंत नरेंद्र गिरी क्या बच्चे, क्या जवान, क्या महिलाएं और क्या बुजुर्ग सभी से अनन्य प्रेम करते थे। सभी को प्रसाद एवं दक्षिणा तो दिया ही करते थे। इसके अलावा वह ग्रामीणों के साथ घंटों बैठकर चर्चा भी करते थे। गांव के लोगों की माने तो वह साल में कम से कम 2 बार आते थे। जमीन की देखरेख ग्रामीणों के हवाले है। महिलाओ ने बताया कि वह धान की रोपाई करती हैं। जिससे उन्हें अच्छी मजदूरी मिलती है। इसके अलावा निराई, गुड़ाई एवं फसलों के काटने के बाद मड़ाई भी करती हैं। जिससे अनाज भी मिलता है। उनका परिवार चलता है। महंत नरेंद्र गिरी स्वयं फसलों की कटाई के दौरान आते थे और अपने हाथों से लोगों को मजदूरी देते थे। ग्रामीणों का कहना है कि छोटे महंत यानी आनंद गिरी भी कभी कबार नरेंद्र गिरी महाराज के साथ आते थे। लेकिन कभी भी उन लोगों के बीच विवाद नहीं हुआ था। ग्रामीणों ने बताया कि सोशल मीडिया एवं समाचार चैनलों के माध्यम से महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जानकारी हुई तो वह स्तब्ध रह गए। पूरे गांव में मातम का माहौल हो गया। ग्रामीण काफी दुखी हुए। ग्रामीणों का कहना है कि बाबाजी कभी आत्महत्या नहीं कर सकते हैं। वह दूसरों को नेकी के रास्ते पर चलने की सलाह देते थे। ऐसे में उनकी किसी ने हत्या ही की है। ग्रामीणों का कहना है कि महंत जी की मौत की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यदि इस मामले में कोई भी दोषी पाया जाए तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो।     PUBLISH BY-MOHD ADNAN DURRANI

प्रयागराज के बाघम्बरी मठ का कौशांबी से गहरा नाता, नरेंद्र गिरी की मौत की निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे जमालमऊ के ग्रामीण_रिपोर्ट-राहुल भट्ट

 

 

यूपी के कौशांबी में एक ऐसा गांव है। जिसका प्रयागराज की बाघम्बरी मठ से गहरा रिश्ता है।
उसकी वजह यह है कि जिले के जमालमऊ गांव में मठ की लगभग 50 बीघे जमीन है। ग्रामीणों की माने तो अक्सर नरेंद्र गिरी महाराज का गांव में आना जाना लगा था। मठ की जमीन पर खेती भी होती है। यहीं से मठ के लिए अनाज आदि जाता है। जब भी महंत गांव आते थे तो ग्रामीण खुशी से झूम उठते थे। वह भी ग्रामीणों से काफी स्नेह रखते थे। उनकी मौत के बाद ग्रामीण काफी दुखी हैं। ग्रामीण महंत की मौत की निष्पक्ष जांच कराए जाने की मांग कर रहे हैं।

प्रयागराज के बाघम्बरी मठ के महंत एवं विश्व हिंदू अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी के भारत ही नहीं वरन पूरे विश्व में भक्त थे। इनकी ख्याति विश्व के कोने कोने में फैली थी। कौशांबी जिले के सिराथू तहसील अंतर्गत नेशनल हाईवे 2 से सटे जमालमऊ गांव से भी महंत नरेंद्र गिरी का गहरा नाता था। क्योंकि गांव में बाघम्बरी मठ की 50 बीघे के आसपास जमीन है। खतौनी में महंत नरेंद्र गिरी का नाम दर्ज है। जमीन में खेतीबारी तो होती ही है। इसके अलावा तमाम तरीके की बागवानी भी होती है। यहां से गेंहू, चावल एवं फल बाघम्बरी मठ जाता है। इसके अलावा यहां पर एक मंदिर भी है। ग्रामीणों की मानें तो समय-समय पर महंत नरेंद्र गिरी गांव आया करते थे। जैसे ही उनके गांव आने की खबर ग्रामीणों को होती थी तो वह खुशी से झूम उठते थे। क्योंकि महंत नरेंद्र गिरी क्या बच्चे, क्या जवान, क्या महिलाएं और क्या बुजुर्ग सभी से अनन्य प्रेम करते थे। सभी को प्रसाद एवं दक्षिणा तो दिया ही करते थे। इसके अलावा वह ग्रामीणों के साथ घंटों बैठकर चर्चा भी करते थे। गांव के लोगों की माने तो वह साल में कम से कम 2 बार आते थे। जमीन की देखरेख ग्रामीणों के हवाले है। महिलाओ ने बताया कि वह धान की रोपाई करती हैं। जिससे उन्हें अच्छी मजदूरी मिलती है। इसके अलावा निराई, गुड़ाई एवं फसलों के काटने के बाद मड़ाई भी करती हैं। जिससे अनाज भी मिलता है। उनका परिवार चलता है। महंत नरेंद्र गिरी स्वयं फसलों की कटाई के दौरान आते थे और अपने हाथों से लोगों को मजदूरी देते थे। ग्रामीणों का कहना है कि छोटे महंत यानी आनंद गिरी भी कभी कबार नरेंद्र गिरी महाराज के साथ आते थे। लेकिन कभी भी उन लोगों के बीच विवाद नहीं हुआ था। ग्रामीणों ने बताया कि सोशल मीडिया एवं समाचार चैनलों के माध्यम से महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जानकारी हुई तो वह स्तब्ध रह गए। पूरे गांव में मातम का माहौल हो गया। ग्रामीण काफी दुखी हुए। ग्रामीणों का कहना है कि बाबाजी कभी आत्महत्या नहीं कर सकते हैं। वह दूसरों को नेकी के रास्ते पर चलने की सलाह देते थे। ऐसे में उनकी किसी ने हत्या ही की है। ग्रामीणों का कहना है कि महंत जी की मौत की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। यदि इस मामले में कोई भी दोषी पाया जाए तो उसके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई हो।

 

 

PUBLISH BY-MOHD ADNAN DURRANI

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