कौशांबी-वक़्त के साथ तमाम चीजे बदल जाती है लेकिन कौशाम्बी के दारानगर में आयोजित होने वाली रामलीला का कुप्पी युद्ध आज भी अपना स्वरुप कायम किये हुए है| इस युद्ध में राम-रावण दल की सेनाये वास्तविक युद्ध करती है| जिसे देखने के लिए आसपास के इलाके से बड़ी तादात में लोग जमा होते है| यहाँ की राम लीला अनवरत 242 वर्षो से बिना किसी बाधा के परंपरा अनुसार होती चली आ रही है| कुप्पी युद्ध का रोमांच ही ऐसा होता है की इसे देखने के लिए दर्शक खुद ब खुद मैदान में खिचे चले आते है| दो दिवसीय कुप्पी युद्ध में पहले दिन काले कपड़ों में सजी रावण की सेना की जीत होती है तो दूसरे दिन लाल कपडे में युद्ध करने वाले राम की सेना असत्य पर सत्य की जीत का विजय पर्व मानती है| यह दृश्य देखकर यह मत सोचियेगा कि किसी झगडे का दृश्य होगा| बल्कि यह दृश्य है दारानगर में 242 वर्षों से आयोजित होने वाली कुप्पी युद्ध का है| जिसमे राम और रावण की दो सेनाये आमने-सामने होती है| भगवान राम की सेना लाल और रावन की सेना काले कपडे मैं होती है| आमना सामना होने पर दोनों सेनाओ के बीच प्लास्टिक की कुप्पी से युद्ध होता है| आयोजकों के सिटी बजाते ही राम व रावण दोनों ही दल के सेनानी जिस तरह एक दूसरे पर टूट पड़ते है उसे देख कर दर्शक रोमांच से भर उठते है|
दारानगर की रामलीला में कुप्पी युद्ध के लिए दो दिन में 7 लड़ाई दोनों दलों के बीच होती है| पहले दिन चार चरणों में लड़ाई होती है| पहले दिन की चारों लड़ाई रावण की सेना जीतती है| दूसरे दिन तीन लड़ाई होती है| यह तीनो लड़ाई जीत कर राम की सेना विजय दशमी का पर्व मानती है| दोनों दिन के सभी साथ युद्ध दस-दस मिनट के होते है| राम व रावण दोनों ही दल में 25 -25 सेनानी होते है| युद्ध इतना विकराल होता है कि देखने वालो के रोंगटे खड़े हो जाते है| युद्ध में सेनानी घायल भी हो जाते है लेकिन रण भूमि की मिटटी ही इनके लिए दवा का काम करती है| सेनानी बताते है की युद्ध में शामिल होना उनके लिए गौरव की बात है| पहले दिन होने वाले चार कुप्पी युद्द मे रावण की सेना श्री राम की सेना पर भारी पड़ती है और उन्हे हराने का पूरा प्रयास करती है| दर्शक बताते हैं की ऐसा कुप्पी युद्द कहीं और देखने को नही मिलता है इसलिए वह यहाँ खींचे चले आते हैं।
रामलीला आयोजक इस युध्द को सजीव करने के लिए महीनो मेहनत करते है| महीनो पहले से तयारी शुरू हो जाती है| बल्लियों से घिरे बड़े मैदान में युध्द के दौरान दोनों दल की सेना इस कदर बेकाबू हो जाती है कि उन्हें सम्हालना आयोजकों के लिए कभी कभी मुश्किल हो जाता है| एक कुप्पी युद्ध के सम्पन्न होने पर मेघनाथ वध और कुम्भकर्ण वध की भी लीलाये होती है| दारानगर की रामलीला का इतिहास 242 वर्ष पुराना है। यहाँ जैसा कुप्पी युद्ध कही और नही होता| आयोजक बताते है कि जहाँ हमारा समाज उंच नीच जाती धर्मं के नाम पर बाँट रहा है वही यहाँ के इस रामलीला मैं पिछले 242 सालो से रावन की दलित सेना व भगवान राम की सेना पल भर के लिए भले ही एक दूसरे के दुश्मन बन जाते है लेकिन पल भर में यही आपस में गले मिल भाई चारे कि मिशाल कायम करते है।
PUBLISH BY-MOHD ADNAN DURRANI