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हर्षोल्लास के साथ मनाया गया सुहेलदेव राजभर जी का 999 वाँ हिन्दू विजय दिवस  - Satyamev Times Media Network.
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उत्तर प्रदेश, सन्त कबीर नगर - अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन द्वारा देश, धर्म, समाज, संस्कृति रक्षक भार शिव कुल दिवाकर श्रावस्ती सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा श्री सुहेलदेव राजभर जी का 999 वाँ हिन्दू विजय दिवस असनहरा खास घाट में हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया एवं अपने अपने घर पर पूर्वांचल के विभिन्न जिलों सन्त कबीर नगर,बस्ती,सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर में भगवान श्री सुहेलदेव जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप दीप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके सादगी शान्ति पूर्वक मनाया गया इसी क्रम में ग्राम असनहरा खास में जल सत्याग्रह आन्दोलन की राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय राजभर संगठन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा गोरखपुर क्षेत्र शैलेश कुमार राजभर एवं अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन राष्ट्रीय प्रवक्ता सरोजा राजभर ने सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शंख बजाकर सादगी शान्ति पूर्वक मनाया जिसके मुख्य अतिथि सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय राजभर संगठन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा गोरखपुर क्षेत्र शैलेश कुमार राजभर रहें। इसी क्रम में ग्राम हकीमपुर में जल सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय महासचिव ओमकार राजभर ने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया और इसी तरह से ग्राम भगवानपुर में जल सत्याग्रह आन्दोलन के जिलाध्यक्ष हरिश्चन्द राजभर,रामकरन राजभर, प्रदेश महासचिव रामानंद राजभर ने अपने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया इसी तरह ग्राम मेहदूपार में सत्याग्रह आन्दोलन बस्ती मंडल अध्यक्ष चैतू प्रसाद राजभर ने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया इस तरह पूर्वांचल के विभिन्न जिलों सन्त कबीर नगर,बस्ती,सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया जिलों में जल सत्याग्रह आन्दोलन कार्यकर्ताओं द्वारा अपने अपने घरों में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके सादगी शान्ति पूर्वक मनायें जाने का समाचार प्राप्त हुआ है हिन्दू विजय दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेश कुमार राजभर ने असनहरा खास घाट राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी की मूर्ति पर धूप अगरबत्ती कपूर जलाकर पुष्प अर्पित कर पूजन कर शंख बजाकर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी के अमर कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह हिन्दू विजय दिवस देश वासियों के लिए गौरव का दिन हैं सम्पूर्ण देश वासियों को सुहेलदेव राजभर जी के आदर्शो एवं उनके उदात्त जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर देश पर सब कुछ न्यौछावर करके राष्ट्र को विश्व गुरू से सुशोभित करना चाहिए भगवान श्री राम मंदिर अयोध्या के संरक्षक राष्ट्रवीर महाराजा श्री सुहेलदेव राजभर जी के आदर्शो पर चलते हुए देश के लोकप्रिय प्रधानमन्त्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं यशस्वी मुख्यमंत्री परम पूज्यनीय आदरणीय श्री योगी आदित्य नाथ महराज जी देश और प्रदेश सुहेलदेव राजभर जी के तर्ज पर चला रहे हैं सुहेलदेव राजभर जी के जीवन चरित्र को आमजनमानस में पहुँचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सुहेलदेव राजभर जी का जीवन परिचय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया एवं सुहेलदेव राजभर जी के नाम से गाजीपुर से नई दिल्ली तक ट्रेन चलाया गया, डाक टिकट जारी किया गया ,बहराइच मेडिकल कालेज का नामकरण भी किया गया ,बहराइच में विश्व स्तर के स्मारक निर्माण के लिए दो सौ करोड़ रुपये का बजट का प्राविधान बनाया गया, नूर मंजिल लाल बाग लखनऊ और गुल्ला वीर मन्दिर बहराइच में सुहेलदेव राजभर जी का भव्य विशालकाय मूर्ति लगाया गया एवं लखनऊ नूर मंजिल तिराहा का नाम बदलकर महाराजा सुहेलदेव राजभर किये तथा आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना किये श्री राजभर ने हिन्दू विजय दिवस पर सुहेलदेव राजभर जी के जीवन चरित्र के विषय में विस्तार से बताया जो प्रस्तुत है भर/ राजभर शासक वीर शिरोमणि संस्कृति ,हिन्दू ,राष्ट्र रक्षक ,भगवान श्री राम मंदिर अयोध्या के संरक्षक श्रावस्ती सम्राट चक्रवर्ती महाराजा भगवान श्री सुहेलदेव राजभर जी का पराक्रम गाथा

वीर शिरोमणि हिन्दू राष्ट्र रक्षक श्रावस्ती सम्राट चक्रवर्ती महाराजा भगवान श्री सुहेलदेव राजभर जी का इतिहास भारत देश गौरवपूर्ण एवं साहसपूर्ण , देशभक्त के रूप में अमर रहा है। जिसे भारत देश मे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। महमूद गजनवी भारत देश को लुटने की दृष्टि से 1001ई0 से लेकर 1025 ई0 तक 17 बार आक्रमण किया एवं मथुरा थानसेर, कन्नौज , व सोमनाथ के अति समृद्धशाली मंदिरों को तोड़ने एवं लुटने मे सफल रहा। सोमनाथ मंदिर को लुटने मे महमूद गजनवी का भांजे सैय्यद सालार मसूद ने भी भाग लिया था। महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई0 के बाद महमूद गजनवी के भान्जे सैयद सालार मसूद ने उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने एवं हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी। लेकिन 10 जून 1034 ई0 को बहराइच के युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर के हाथों से सैय्यद सालार मसूद गाजी साढ़े तीन लाख जिहादी इस्लामी सेना सहित मारा गया इस्लामी सेना की इस पराजय के कारण पुरे वि्श्व मे ऐसा पराक्रम से भय व्यापत हो गया कि भारत वर्ष में 157 वर्षों तक किसी भी विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों का भारत देश में आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ । ऐसा महाराजा सुहेलदेव राजभर जी ने पराक्रम, एवं वीरता का परिचय भारत देश की धरती पर दिया था।महाराजा सुहेलदेव राजभर ने हिन्दू सेना का गठन किया था। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश महाराजा सुहेलदेव राजभर राजा बिहारीमल के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे।इनकी माता का नाम जयलक्ष्मी था। सुहेलदेव राजभर के तीन भाई एवं एक बहन थीं।राजा बिहारीमल के संतानों का विवरण इस प्रकार से है। 1. सुहेलदेव राजभर 2. रुद्रमल 3. बागमल राजभर 4. सहारमल या भूराय्देव राजभर तथा पुत्री अंबेदेवी राजभर । वैसे महाराजा सुहेलदेव राजभर को और भी नामों से जाना जाता है।उन्हेँ सुरिध्वज , मोरध्वज मकरिध्वज आदि भर / राजभर राजाओं की तरह से नाम मिलता है।अलग अलग इतिहासकार ने महाराजा सुहेलदेव राजभर को हिन्दू "भर" , थारू या राजपूत जाति का मानते थे।महाराजा बिहारीमल ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी।जिसका प्रारंभिक शुद्ध नाम भरराइच था। इसी कारण इन्हें बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा बिहारीमल को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 18 फरवरी 1009 ई. को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया । अवध एवं बहराइच गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है । वे जाति क हिन्दू भर थे,महाराजा सुहेलदेव राजभर को नागवंशी, भारशिव, क्षत्रिय एवं भर/ राजभर कहा जाता है। इस पर सभी भर/ राजभर एकमत हैं। महाराजा सुहेलदेव राजभर का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था। गोंडा, बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे । इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव राजभर के सहयोगी राजभर राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6.मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल राजभर 10. जयपाल राजभर 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21.कल्याण। ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव राजभर के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्र रक्षा हेतु सदैव आत्म बलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव राजभर के तीन भाई रुद्रमल राजभर , बागमल राजभर , व सहारमल या भूराय्देव तथा बहन अंबेदेवी थी. जो अपने भाई महाराजा सुहेलदेव राजभर के ही समान वीर थे। तथा पिता की भाँति उनका सम्मान करते थे। महमूद गजनवी की मृत्यु के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सैय्यद सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर रख दिया ।वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्दीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि एक बड़ी घुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने घोड़े दौड़ा कर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालाँकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए वीर गति प्राप्त हो गए। लेकिन उनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी। मेरठ का राजा हरिदत्त सैय्यद सालार मसूद से हार मानकर मुसलमान हो गया तथा उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई।बहुत से हिंदू राजाओं को जबरजस्ती मुसलमान सैयद सालार मसूद ने बनाया । इस्लाम का बढ़ावा कर सैयद सालार मसूद अपने मकसद मे कामयाब दिखाई दिया। कन्नौज का शासक भी सैयद सालार मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजा गया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरात- ए- मसूदी के विवरण के अनुसार सप्तश्रृषि (सतरिख) (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था । एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसलिए इस स्थान का नाम सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावाँ, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुशिकिल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बनता था। आइना- ए- मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिला बाराहजारी का । मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का। इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारा गयाा। कडा़ क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूद के पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की मृत्यु हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी। इस प्रयास के असफल होने के बाद कडा़, मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओं को संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से । इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेश वाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदी बना लिए गए। इन संदेश वाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गया ।लेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बड़ी सेना के साथ कड़ा मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरता से लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयद सालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जब बहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को घेर लिया। इस पर सालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच उनके पिता सालार साहू का निधन हो गया। बहराइच के भर/राजभर राजा महाराजा सुहेलदेव राजभर भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य की मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परम्परा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था। सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा। पहली लड़ाई मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडा़ई हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया । उन्होने राजा सुहेलदेव राजभर के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विष बुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी । ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की घुड़सवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए । भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी। दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव राजभर के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारों गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव राजभर की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा । वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पड़े मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए 5 जून 1034 को । सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई। अब हिन्दू सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर रहा था। उसने सालार मसूद को घेर लिया ।इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढ़े भयंकर युद्व हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है । शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई। 10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी घोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका । राजा सुहेलदेव राजभर ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे सालार मसूद का अंत हो गया । इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया।सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी साढ़े तीन लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव राजभर ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके ।संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है।ऐसे भर/ राजभर राजा महाराज सुहेलदेव राजभर को शत शत नमन।  

हर्षोल्लास के साथ मनाया गया सुहेलदेव राजभर जी का 999 वाँ हिन्दू विजय दिवस 

उत्तर प्रदेश, सन्त कबीर नगर – अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन द्वारा देश, धर्म, समाज, संस्कृति रक्षक भार शिव कुल दिवाकर श्रावस्ती सम्राट राष्ट्रवीर महाराजा श्री सुहेलदेव राजभर जी का 999 वाँ हिन्दू विजय दिवस असनहरा खास घाट में हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया एवं अपने अपने घर पर पूर्वांचल के विभिन्न जिलों सन्त कबीर नगर,बस्ती,सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर में भगवान श्री सुहेलदेव जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप दीप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके सादगी शान्ति पूर्वक मनाया गया इसी क्रम में ग्राम असनहरा खास में जल सत्याग्रह आन्दोलन की राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय राजभर संगठन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा गोरखपुर क्षेत्र शैलेश कुमार राजभर एवं अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन राष्ट्रीय प्रवक्ता सरोजा राजभर ने सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शंख बजाकर सादगी शान्ति पूर्वक मनाया जिसके मुख्य अतिथि सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं राष्ट्रीय महासचिव अखिल भारतीय राजभर संगठन क्षेत्रीय उपाध्यक्ष भारतीय जनता पार्टी पिछड़ा वर्ग मोर्चा गोरखपुर क्षेत्र शैलेश कुमार राजभर रहें। इसी क्रम में ग्राम हकीमपुर में जल सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय महासचिव ओमकार राजभर ने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया और इसी तरह से ग्राम भगवानपुर में जल सत्याग्रह आन्दोलन के जिलाध्यक्ष हरिश्चन्द राजभर,रामकरन राजभर, प्रदेश महासचिव रामानंद राजभर ने अपने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया इसी तरह ग्राम मेहदूपार में सत्याग्रह आन्दोलन बस्ती मंडल अध्यक्ष चैतू प्रसाद राजभर ने अपने घर में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके शान्ति पूर्वक मनाया इस तरह पूर्वांचल के विभिन्न जिलों सन्त कबीर नगर,बस्ती,सिद्धार्थ नगर, बलरामपुर, गोण्डा, बहराइच, श्रावस्ती, महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया जिलों में जल सत्याग्रह आन्दोलन कार्यकर्ताओं द्वारा अपने अपने घरों में सुहेलदेव राजभर जी के चित्र पर फूल माला चढ़ाकर धूप अगरबत्ती पूजा अर्चना करके सादगी शान्ति पूर्वक मनायें जाने का समाचार प्राप्त हुआ है हिन्दू विजय दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय जल सत्याग्रह आन्दोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष शैलेश कुमार राजभर ने असनहरा खास घाट राष्ट्रवीर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी की मूर्ति पर धूप अगरबत्ती कपूर जलाकर पुष्प अर्पित कर पूजन कर शंख बजाकर महाराजा सुहेलदेव राजभर जी के अमर कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह हिन्दू विजय दिवस देश वासियों के लिए गौरव का दिन हैं सम्पूर्ण देश वासियों को सुहेलदेव राजभर जी के आदर्शो एवं उनके उदात्त जीवन चरित्र से प्रेरणा लेकर देश पर सब कुछ न्यौछावर करके राष्ट्र को विश्व गुरू से सुशोभित करना चाहिए भगवान श्री राम मंदिर अयोध्या के संरक्षक राष्ट्रवीर महाराजा श्री सुहेलदेव राजभर जी के आदर्शो पर चलते हुए देश के लोकप्रिय प्रधानमन्त्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं यशस्वी मुख्यमंत्री परम पूज्यनीय आदरणीय श्री योगी आदित्य नाथ महराज जी देश और प्रदेश सुहेलदेव राजभर जी के तर्ज पर चला रहे हैं सुहेलदेव राजभर जी के जीवन चरित्र को आमजनमानस में पहुँचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने सुहेलदेव राजभर जी का जीवन परिचय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया एवं सुहेलदेव राजभर जी के नाम से गाजीपुर से नई दिल्ली तक ट्रेन चलाया गया, डाक टिकट जारी किया गया ,बहराइच मेडिकल कालेज का नामकरण भी किया गया ,बहराइच में विश्व स्तर के स्मारक निर्माण के लिए दो सौ करोड़ रुपये का बजट का प्राविधान बनाया गया, नूर मंजिल लाल बाग लखनऊ और गुल्ला वीर मन्दिर बहराइच में सुहेलदेव राजभर जी का भव्य विशालकाय मूर्ति लगाया गया एवं लखनऊ नूर मंजिल तिराहा का नाम बदलकर महाराजा सुहेलदेव राजभर किये तथा आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव राज्य विश्वविद्यालय की स्थापना किये श्री राजभर ने हिन्दू विजय दिवस पर सुहेलदेव राजभर जी के जीवन चरित्र के विषय में विस्तार से बताया जो प्रस्तुत है भर/ राजभर शासक वीर शिरोमणि संस्कृति ,हिन्दू ,राष्ट्र रक्षक ,भगवान श्री राम मंदिर अयोध्या के संरक्षक श्रावस्ती सम्राट चक्रवर्ती महाराजा भगवान श्री सुहेलदेव राजभर जी का पराक्रम गाथा

वीर शिरोमणि हिन्दू राष्ट्र रक्षक श्रावस्ती सम्राट चक्रवर्ती महाराजा भगवान श्री सुहेलदेव राजभर जी का इतिहास भारत देश गौरवपूर्ण एवं साहसपूर्ण , देशभक्त के रूप में अमर रहा है। जिसे भारत देश मे कभी भुलाया नहीं जा सकता है। महमूद गजनवी भारत देश को लुटने की दृष्टि से 1001ई0 से लेकर 1025 ई0 तक 17 बार आक्रमण किया एवं मथुरा थानसेर, कन्नौज , व सोमनाथ के अति समृद्धशाली मंदिरों को तोड़ने एवं लुटने मे सफल रहा। सोमनाथ मंदिर को लुटने मे महमूद गजनवी का भांजे सैय्यद सालार मसूद ने भी भाग लिया था। महमूद गजनवी की मृत्यु 1030 ई0 के बाद महमूद गजनवी के भान्जे सैयद सालार मसूद ने उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने एवं हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी। लेकिन 10 जून 1034 ई0 को बहराइच के युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर के हाथों से सैय्यद सालार मसूद गाजी साढ़े तीन लाख जिहादी इस्लामी सेना सहित मारा गया इस्लामी सेना की इस पराजय के कारण पुरे वि्श्व मे ऐसा पराक्रम से भय व्यापत हो गया कि भारत वर्ष में 157 वर्षों तक किसी भी विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों का भारत देश में आक्रमण करने का साहस नहीं हुआ । ऐसा महाराजा सुहेलदेव राजभर जी ने पराक्रम, एवं वीरता का परिचय भारत देश की धरती पर दिया था।महाराजा सुहेलदेव राजभर ने हिन्दू सेना का गठन किया था।

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश महाराजा सुहेलदेव राजभर राजा बिहारीमल के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे।इनकी माता का नाम जयलक्ष्मी था। सुहेलदेव राजभर के तीन भाई एवं एक बहन थीं।राजा बिहारीमल के संतानों का विवरण इस प्रकार से है। 1. सुहेलदेव राजभर 2. रुद्रमल 3. बागमल राजभर 4. सहारमल या भूराय्देव राजभर तथा पुत्री अंबेदेवी राजभर । वैसे महाराजा सुहेलदेव राजभर को और भी नामों से जाना जाता है।उन्हेँ सुरिध्वज , मोरध्वज मकरिध्वज आदि भर / राजभर राजाओं की तरह से नाम मिलता है।अलग अलग इतिहासकार ने महाराजा सुहेलदेव राजभर को हिन्दू “भर” , थारू या राजपूत जाति का मानते थे।महाराजा बिहारीमल ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी।जिसका प्रारंभिक शुद्ध नाम भरराइच था। इसी कारण इन्हें बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा बिहारीमल को माघ मांह की बसंत पंचमी के दिन 18 फरवरी 1009 ई. को एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया । अवध एवं बहराइच गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है । वे जाति क हिन्दू भर थे,महाराजा सुहेलदेव राजभर को नागवंशी, भारशिव, क्षत्रिय एवं भर/ राजभर कहा जाता है। इस पर सभी भर/ राजभर एकमत हैं। महाराजा सुहेलदेव राजभर का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था। गोंडा, बहराइच, लखनऊ, बाराबंकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे । इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव राजभर के सहयोगी राजभर राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे -1. रायसायब 2. रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6.मकरन 7. शंकर 8. करन 9. बीरबल राजभर 10. जयपाल राजभर 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरखू15. नरहर 16. भल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19. भल्ला 20. नरसिंह तथा 21.कल्याण। ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव राजभर के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्र रक्षा हेतु सदैव आत्म बलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे।

इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव राजभर के तीन भाई रुद्रमल राजभर , बागमल राजभर , व सहारमल या भूराय्देव तथा बहन अंबेदेवी थी. जो अपने भाई महाराजा सुहेलदेव राजभर के ही समान वीर थे। तथा पिता की भाँति उनका सम्मान करते थे। महमूद गजनवी की मृत्यु के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्व ने सैय्यद सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर रख दिया ।वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू, सालारसैफुद्दीन, अमीर सैयद एजाजुद्वीन, मलिक दौलत मिया, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि एक बड़ी घुड़सवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए। पुनः भयंकर युद्व प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व रायहरगोपाल ने अपने घोड़े दौड़ा कर मसूद पर गदे से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालाँकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए वीर गति प्राप्त हो गए। लेकिन उनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी।

मेरठ का राजा हरिदत्त सैय्यद सालार मसूद से हार मानकर मुसलमान हो गया तथा उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई।बहुत से हिंदू राजाओं को जबरजस्ती मुसलमान सैयद सालार मसूद ने बनाया । इस्लाम का बढ़ावा कर सैयद सालार मसूद अपने मकसद मे कामयाब दिखाई दिया। कन्नौज का शासक भी सैयद सालार मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना प्रारंभ किया। इसी क्रम में मलिक फैसल को वाराणसी भेजा गया तथा स्वयं सालार मसूद सप्तॠषि (सतरिख) की ओर बढ़ा। मिरात- ए- मसूदी के विवरण के अनुसार सप्तश्रृषि (सतरिख) (बाराबंकी) हिंदुओं का एक बहुत बड़ा तीर्थ स्थल था । एक किवदंती के अनुसार इस स्थान पर भगवान राम व लक्ष्मण ने शिक्षा प्राप्त की थी। यह सात ॠषियों का स्थान था, इसलिए इस स्थान का नाम सप्तऋर्षि पड़ा था, जो धीरे-धीरे सतरिख हो गया। सालार मसूद विलग्राम, मल्लावाँ, हरदोई, संडीला, मलिहाबाद, अमेठी व लखनऊ होते हुए सतरिख पहुंचा। उसने अपने गुरू सैयदइब्राहीम बारा हजारी को धुंधगढ़ भेजा क्योंकि धुंधगढ क़े किले में उसके मित्र दोस्त मोहम्मद सरदारको राजा रायदीन दयाल व अजय पाल ने घेर रखा था। इब्राहिम बाराहजारी जिधर से गुजरते गैरमुसलमानों का बचना मुशिकिल था। बचता वही था जो इस्लाम स्वीकार कर मुसलमान बनता था। आइना- ए- मसूदीके अनुसार – निशान सतरिख से लहराता हुआ बाराहजारी का। चला है धुंधगढ़ को काकिला बाराहजारी का । मिला जो राह में मुनकिर उसे दे उसे दोजख में पहुचाया। बचा वह जिसने कलमा पढ़लिया बारा हजारी का।

इस लड़ाई में राजा दीनदयाल व तेजसिंह बड़ी ही बीरता से लड़े लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए। परंतु दीनदयाल के भाई राय करनपाल के हाथों इब्राहीम बाराहजारी मारा गयाा। कडा़ क़े राजा देव नारायन और मानिकपुर राजा भोजपात्र ने एक नाई को सैयद सालार मसूद के पास भेजा कि वह विष से बुझी नहन्नी से उसके नाखून काटे, ताकि सैयद सालार मसूद की मृत्यु हो जायें लेकिन इलाज से वह बच गया। इस सदमें से उसकी माँ खुतुर मुअल्ला चल बसी।

इस प्रयास के असफल होने के बाद कडा़, मानिकपुर के राजाओं ने बहराइच के राजाओं को संदेश भेजा कि हम अपनी ओर से इस्लामी सेना पर आक्रमण करें और तुम अपनी ओर से । इसप्रकार हम इस्लामी सेना का सफाया कर देगें। परंतु संदेश वाहक सैयद सालार के गुप्तचरों द्वारा बंदी बना लिए गए। इन संदेश वाहकों में दो ब्राह्मण और एक नाई थे। ब्राह्मणों को तो छोड़ दिया गया ।लेकिन नाई को फांसी दे दी गई इस भेद के खुल जाने पर मसूद के पिता सालार साहु ने एक बड़ी सेना के साथ कड़ा मानिकपुर पर धावा बोल दिया। दोनों राजा देवनारायण व भोजपत्र बडी वीरता से लड़ें लेकिन परास्त हुए। इन राजाओं को बंदी बनाकर सतरिख भेज दिया गया। वहॉ से सैयद सालार मसूद के आदेश पर इन राजाओं को सालार सैफुद्दीन के पास बहराइच भेज दिया गया। जब बहराइज के राजाओं को इस बात का पता चला तो उन लोगो ने सैफुद्दीन को घेर लिया। इस पर सालार मसूद उसकी सहायता हेतु बहराइच की ओर आगें बढे। इसी बीच उनके पिता सालार साहू का निधन हो गया।

बहराइच के भर/राजभर राजा महाराजा सुहेलदेव राजभर भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य की मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास मे प्रथम रविवार को, जो बृहस्पतिवार के बाद पड़ता था एक बड़ा मेला लगता था यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परम्परा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड मे स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था।

सालार मसूद के बहराइच आने के समाचार पाते ही बहराइच के राजा गण– राजा रायब, राजा सायब, अर्जुन भीखन गंग, शंकर, करन, बीरबर, जयपाल, श्रीपाल, हरपाल,हरख्, जोधारी व नरसिंह महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में लामबंद हो गये। ये राजा गण बहराइचशहर के उत्तर की ओर लगभग आठ मील की दूरी पर भकला नदी के किनारे अपनी सेना सहित उपस्थित हुए। अभी ये युद्व की तैयारी कर ही रहे थे कि सालार मसूद ने उन पर रात्रि आक्रमण (शबखून) कर दिया। मगरिब की नमाज के बाद अपनी विशाल सेना के साथ वह भकला नदी की ओर बढ़ा और उसने सोती हुई हिंदु सेना पर आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण में दोनों ओर के अनेक सैनिक मारे गए लेकिन बहराइच की इस पहली लड़ाई मे सालार मसूद बिजयी रहा।
पहली लड़ाई मे परास्त होने के पश्चात पुनः अगली लडा़ई हेतु हिंदू सेना संगठित होने लगी उन्होने रात्रि आक्रमण की संभावना पर ध्यान नही दिया । उन्होने राजा सुहेलदेव राजभर के परामर्श पर आक्रमण के मार्ग में हजारो विष बुझी कीले अवश्य धरती में छिपा कर गाड़ दी । ऐसा रातों रात किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि जब मसूद की घुड़सवार सेना ने पुनः रात्रि आक्रमण किया तो वे इनकी चपेट मे आ गए। हालाकि हिंदू सेना इस युद्व मे भी परास्त हो गई लेकिन इस्लामी सेना के एक तिहायी सैनिक इस युक्ति प्रधान युद्व मे मारे गए । भारतीय इतिहास मे इस प्रकार युक्तिपूर्वक लड़ी गई यह एक अनूठी लड़ाई थी।

दो बार धोखे का शिकार होने के बाद हिंदू सेना सचेत हो गई तथा महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में निर्णायक लड़ाई हेतु तैयार हो गई। कहते है इस युद्ध में प्रत्येक हिंदू परिवार से युवा हिंदू इस लड़ाई मे सम्मिलित हुए। महाराजा सुहेलदेव राजभर के शामिल होने से हिंदूओं का मनोबल बढ़ा हुआ था। लड़ाई का क्षेत्र चिंतौरा झील से हठीला और अनारकली झील तक फैला हुआ था। जुन, 1034 ई. को हुई इस लड़ाई में सालार मसूद ने दाहिने पार्श्व(मैमना) की कमान मीरनसरूल्ला को तथा बाये पार्श्व (मैसरा) की कमान सालार रज्जब को सौपातथा स्वयं केंद्र (कल्ब) की कमान संभाली तथा भारतीय सेना पर आक्रमण करने का आदेश दिया।इससे पहले इस्लामी सेना के सामने हजारों गायों व बैलो को छोड़ा गया ताकि हिंदू सेना प्रभावी आक्रमण न कर सके लेकिन महाराजा सुहेलदेव राजभर की सेना पर इसका कोई भी प्रभाव न पड़ा । वे भूखे सिंहों की भाति इस्लामी सेना पर टूट पड़े मीर नसरूल्लाह बहराइच के उत्तर बारह मील की दूरी पर स्थित ग्राम दिकोली के पास मारे गए 5 जून 1034 को । सैयर सालार समूद के भांजे सालार मिया रज्जब बहराइच के पूर्व तीन कि. मी. की दूरी पर स्थित ग्राम शाहपुर जोत यूसुफ के पास मार दिये गए। इनकी मृत्य 8 जून, 1034 ई 0 को हुई। अब हिन्दू सेना ने राजा करण के नेतृत्व में इस्लामी सेना के केंद्र पर आक्रमण किया जिसका नेतृत्व सालार मसूद स्वंय कर रहा था। उसने सालार मसूद को घेर लिया ।इस पर सालार सैफुद्दीन अपनी सेना के साथ उनकी सहायता को आगे बढ़े भयंकर युद्व हुआ जिसमें हजारों लोग मारे गए। स्वयं सालार सैफुद्दीन भी मारा गया उसकी समाधि बहराइच-नानपारा रेलवे लाइन के उत्तर बहराइच शहर के पास ही है । शाम हो जाने के कारण युद्व बंद हो गया और सेनाएं अपने शिविरों में लौट गई। 10 जून, 1034 को महाराजा सुहेलदेव राजभर के नेतृत्व में हिंदू सेना ने सालार मसूद गाजी की फौज पर तूफानी गति से आक्रमण किया। इस युद्ध में सालार मसूद अपनी घोड़ी पर सवार होकर बड़ी वीरता के साथ लड़ा लेकिन अधिक देर तक ठहर न सका । राजा सुहेलदेव राजभर ने शीध्र ही उसे अपने बाण का निशाना बना लिया और उनके धनुष द्वारा छोड़ा गया एक विष बुझा बाण सालार मसूद के गले में आ लगा जिससे सालार मसूद का अंत हो गया । इसके दूसरे हीं दिन शिविर की देखभाल करने वाला सालार इब्राहीम भी बचे हुए सैनिको के साथ मारा गया।सैयद सालार मसूद गाजी को उसकी साढ़े तीन लाख इस्लामी सेना के साथ समाप्त करने के बाद महाराजा सुहेल देव राजभर ने विजय पर्व मनाया और इस महान विजय के उपलक्ष्य में कई पोखरे भी खुदवाए। वे विशाल ”विजय स्तंभ” का भी निर्माण कराना चाहते थे लेकिन वे इसे पूरा न कर सके ।संभवतः यह वही स्थान है जिसे एक टीले के रूप मे श्रावस्ती से कुछ दूरी पर इकोना-बलरामपुर राजमार्ग पर देखा जा सकता है।ऐसे भर/ राजभर राजा महाराज सुहेलदेव राजभर को शत शत नमन।

 

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