संतकबीरनगर जिले के महुली थाना क्षेत्र के भिट्हां गांव में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्री राम कथा के छठे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिली। कथा के छठवें दिन की शुरुवात कथा व्यास पंडित विनय ओझा बाल ब्यास जी महाराज की आरती कार्यक्रम से हुई। जिले के वरिष्ठ समाजसेवी तथा सूर्या ग्रुप ऑफ कॉलेज के चेयरमैन डॉ उदय प्रताप चतुर्वेदी के पैतृक गांव भिठ्हा स्थित उनके घर पर आयोजित सात दिवसीय संगीतमय श्रीराम कथा की आरती कार्यक्रम में जहां मुख्य यजमान श्रीमती चंद्रावती देवी और परिवार के अन्य सदस्य शामिल रहे वहीं समाजसेवा, शिक्षा, राजनीति और मीडिया जगत के दिग्गज भी उपस्थित रहे। उपस्थित उपरोक्त जनों ने भी कथा व्यास का आशीर्वाद ग्रहण किया। इस दौरान कथा व्यास ने सभी का माल्यार्पण कर उन्हें अंगवस्त्र प्रदान किया। जबकि डॉ उदय ने सभी को राम नामी गमछा सप्रेम भेट किया। कथा के छठवें दिन अयोध्या से पधारे सुप्रसिद्ध कथा वाचक पंडित विनय ओझा ने श्री राम कथा के महत्व प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विश्वास, श्रद्धा और भक्ति से ही ईश्वर प्राप्ति संभव है। इस दौरान उन्होंने छठे दिन जब प्रभु श्रीराम के विवाह का वर्णन किया, तो मानो पूरा पंडाल श्रीराम के जयकारों से गूंज उठा हो।अपने मुखारविंद से कथा व्यास ने केवट की







परम भक्ति का वर्णन किया। केवट ने राम-लक्ष्मण और सीता माता को गंगा पार लेकर गए केवट को निर्मल भक्ति का वरदान देकर प्रभु श्रीराम ने गंगा किनारे पहुंचकर गंगा मैया की पूजा अर्चना की। उसके बाद प्रभु श्रीराम प्रयागराज पहुंचे,और ऋषि भारद्वाज से भेंट की। एक रात ऋषि भारद्वाज के आश्रम में विश्राम करने के उपरांत अगले दिन प्रातः काल आगे बढ़े और महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में पहुंचने पर ऋषियों ने प्रभु की सुंदर स्तुति गाई।उसके बाद प्रभु श्रीराम ने महर्षि बाल्मीकि से स्थान पूछकर चित्रकूट में निवास किया। दूसरी तरफ सुमंत वापस अयोध्या पहुंचे और राजा दशरथ ने जब सुना कि राम वापस नहीं आए, तो दशरथ ने राम के वियोग में प्राण त्याग दिए। उधर भरत अपने ननिहाल से वापस आए और पिता का अंतिम संस्कार किया गया। उसके बाद बैठी राजसभा में भरत जी ने निर्णय लिया कि वन में जाकर श्रीराम को राजसत्ता सौंप दी जाए, फिर भरत जी सभी माताओं और अयोध्या वासियों को साथ लेकर चित्रकूट में पधारे और राम जी से भेंट हुई। भरत जी ने प्रभु श्री राम से राजगद्दी संभालने का आग्रह किया। जिस पर श्री राम ने राजसत्ता अस्वीकार कर दी ओर श्रीराम ने भरत को अपनी चरणपादुका दीं। भरत चरणपादुका साथ लेकर वापस अवधपुरी आए और राम जी की चरण पादुकाओं से आज्ञा लेकर राजसत्ता का कार्य संभाला था।