आज एक पत्रकार नही बल्कि एक आम पीड़ित/फरियादी के रूप में मैं पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचा। महोदय के ऑफिस में फरियादियों के बैठने के लिए सभी कुर्सियां फुल थी, इस वजह से मुझे कुछ देर बाहर प्रतिक्षा करना पड़ा। यूं तो मैने कभी पत्रकार होने का दंभ नही भरा और न ही कभी इस बात का खुद में अहंकार पाला कि मैं एक पुराना अथवा बड़े बैनर का पत्रकार हूं। प्रसार भारती(आकाशवाणी) रिपोर्टर यानी सरकारी संस्थान का संवाददाता होने के नाते मैं निश्चित तौर पर एसपी ऑफिस के अंदर जाकर उनके सामने नही बल्कि उनके बगल वाली कुर्सी पर बैठ सकता था। पर आज मैने ये तय किया था कि आज बड़े नाम वाले एसपी साहब सत्यजीत गुप्त के जनता दरबार को नजदीक से देखूंगा और ये समझूंगा कि उनकी जनता के प्रति कार्यशैली कैसी है? इसी के परीक्षण के लिए खुद अपने एक निजी मामले को एक कागज के पन्ने पर उकेर कर मैं एसपी साहब के जनता दरबार में एक आम फरियादी की तरह पहुंचा जहां पहले से ही कई फरियादी बैठे हुए थे जिनमे 03 पीड़ित महिला फरियादी भी अपने आने की प्रतिक्षा में बैठी थी। पहला नंबर कोतवाली, फिर दुधारा और मेंहदावल क्षेत्र की रहने वाली पीड़ित महिलाओ की क्रमवार समस्याओं को साहब ने सुना और उनके जल्द निस्तारण की बात कही। पर उनके द्वारा आधी आबादी की बुजुर्ग महिलाओं को जब “अम्मा” कहकर बुलाया गया और उन्हें सम्मानपूर्वक अगली सीट पर बिठाया गया तब हृदय के एक कोने में साहब के लिए आदर और सम्मान की जो भावना मेरे अंदर जागृत हुई उसे शब्दो में बयां कर पाना मुश्किल है। खैर सामने की कुर्सी पर बैठी महिलाओं को “अम्मा” कहकर बुलाने वाले एसपी सत्यजीत गुप्ता ने जिस तरह उनकी समस्याओं को सुना और उसका निराकरण किया वो खुद में जहां बेमिशाल रहा वहीं उनके अंदर संस्कारों की जो पाठशाला नजर आई वो शायद इस पेशे से जुड़े लोगों के भीतर कम ही नजर आती है। यूपी की पुलिस की पहचान जहां कड़क अंदाज वाली पुलिस के रूप में होती है वहीं इस पहचान के विपरीत खाकी के इस अफसर के द्वारा फरियादियों के प्रति नरमी वाले बर्ताव को देखकर ये लगा कि अब वाकई में यूपी की पुलिस जनता के लिए मित्र पुलिस बन बैठी है। देश की सुरक्षा के लिए देश की सीमाओं पर जैसे फौज तैनात रहती है और हमें आंतकवादियों, दहशतगर्दों से बचाती है। उसी प्रकार पुलिस हमारे समाज में अपनी अहम भूमिका निभाती है और देश के अंदर की सुरक्षा और कानून व्यवस्था की देख-रेख करती है। पर आम तौर पर पुलिस के प्रति लोगो की धारणाएं कुछ अलग ही रहती है, ये धारणाएं किसी से छुपी भी नहीं, खासकर यूपी पुलिस प्रति सभी की धारणाएं ! यूपी पुलिस की बीती कारगुजारियां जनता के भीतर जो खौफ पैदा कर रखी हैं उसे देखकर जनता के मन मस्तिष्क पर पुलिस के प्रति हमेशा नकारात्मक खयाल ही बने रहते हैं। लेकिन आज एक पत्रकार के हैसियत से मैने जो अनुभव किया और एसपी सत्यजीत गुप्ता के कार्यशैली को नजदीक से देखकर जो पाया वो ये संकेत देने के लिए काफी रहा कि अब यूपी की पुलिस पूरी तरह से बदल चुकी है। अपराध एवं अपराधियों के खिलाफ सख़्त रहने वाली यूपी पुलिस जनता के साथ नरमी से पेश आते हुए किस तरह उनकी समस्याओं का निस्तारण करती है इसका आज एक बेहतरीन उदाहरण एसपी साहब के ऑफिस में देखने को मिला। खुद के मामले में न्याय की अपेक्षा लिए साहब के ऑफिस में बैठकर जब मैं उनके द्वारा जनता की समस्याओं को सुन उसका निराकरण किया जा रहा था तब साहब की बेहतरीन कार्यशैली को देख मैं खुद की शिकायत को भूल बैठा था, सबकी समस्याओं को सुनने के बाद जब आईपीएस सत्यजीत गुप्ता अचानक मेरे तरफ मुखातिब होकर मुझसे पूंछे कि जी अजय क्या है आपकी समस्या? कोई बाइट के लिए आएं है अथवा कोई और बात है? एसपी साहब की इस आवाज ने मेरी तंद्रा को तोड़ा और तब मैने अपना प्रार्थना पत्र उन्हे देकर बिना कुछ कहे एक बहाना बनाकर ये कहकर उनके ऑफिस से चला आया कि “सर नोएडा से कुछ लोग बाईपास पर आए हैं, उनसे मिलने जा रहा हूं, आप मेरा प्रार्थना पत्र देखकर आवश्यक कार्यवाई के लिए मातहत कर्मी को निर्देशित जरूर कर दीजिएगा। आपकी महती कृपा होगी।
#कौन हैं आईपीएस सत्यजीत गुप्ता?
साइबर लॉ और साइबर फोरेंसिक की डिग्रीधारी सत्यजीत गुप्त (आईपीएस) यूपी के बलिया जिले के रहने वाले हैं और वर्ष 2017 बैच के आईपीएस हैं। बीटेक (इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रानिक इंजीनियरिंग) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा साइबर लॉ और साइबर फोरेंसिक डिग्रीधारी आईपीएस सत्यजीत गुप्ता एकेडमिक ट्रेनिंग के बाद सबसे पहले बिजनौर जनपद में व्यवहारिक प्रशिक्षण के लिए भेजे गए। इसके बाद इनकी तैनाती बिजनौर जनपद में हुई। जहां पर एक साल के अपने कार्यकाल में उन्होंने खनन माफिया पर शिकंजा कसते हुए करोड़ों रूपए कीमत की संपत्ति कुर्क कराई। इसके बाद वह कानपुर जनपद में तैनात किए गए। फिर आगरा में डीसीपी रहे।कानपुर में अपने अल्प कार्यकाल में यूपीएसआईडीसी के चीफ इंजीनियर अरुण मिश्रा को भ्रष्टाचार के मुकदमे में गिरफ्तार कर जेल भेजने वाले आईपीएस सत्यजीत गुप्ता की कहानी कुछ अलग ही है। अरुण मिश्रा अभी तक जेल में हैं। अरुण मिश्रा की अब तक जमानत नहीं हो पाई है। अरुण मिश्रा की केस डायरी खुद आईपीएस सत्यजीत गुप्ता ने अपने हाथ से लिखी थी। सत्यजीत गुप्त ने उन्हें उस समय गिरफ्तार किया गया था जब खुद ईडी के अधिकारी भी इंजीनियर मिश्रा की तलाश कर रहे थे।
आगरा में भी आईपीएस सत्यजीत गुप्ता के गुडवर्क की लम्बी फेहरिस्त है। आरपीएफ के दरोगा और 2 कांस्टेबलों को अपहरण के आरोप में गिरफ्तार कर उन्होंने जेल भेजा था।उस वक्त कुछ ही घंटों में अगवा हुई सभी बहनों को भी पुलिस ने बरामद कर लिया था। इसके अलावा कई गुडवर्क आईपीएस सत्यजीत गुप्ता के नाम दर्ज है।