1000 गाड़ियों के काफिले के साथ लखनऊ के लिए निकले जय चौबे……..
संतकबीरनगर– भाजपा से बगावत कर सदर विधानसभा सीट के विधायक जय चौबे आज सपा में शामिल होंगे। तकरीबन एक हजार गाड़ियों के काफिले और हज़ारों समर्थकों को साथ लेकर जय चौबे लखनऊ निकल चुके है।प्रदेश की राजधानी लखनऊ आज पूर्वांचल के कद्दावर नेताओं के जमावड़े की गवाह बनेगी।विधायक जय चौबे अब से कुछ देर बाद समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव की मौजूदगी में सपा का दामन थाम लेंगे जो भाजपा के लिए एक बड़ा झटका साबित होगा।लड़ाकू स्वभाव के धनी जय चौबे के राजनैतिक सफर की शुरुआत वर्ष 1999 से शुरू होती है जब वो जिला पंचायत सदस्य चुने गए, उस समय पहलवान सिंह जैसे दिग्गजों को पटखनी देकर जय चौबे जिला पंचायत उपाध्यक्ष बने थे।राजनीति की शुरुवाती धमाकेदार पारी खेलने वाले जय चौबे जिला पंचायत उपाध्यक्ष के बाद वर्ष 2005 में खलीलाबाद के ब्लॉक प्रमुख व प्रमुख संघ के अध्यक्ष बने।2005 से ही जय चौबे राजनीति में हावी होते गए जिसका नतीजा 2010 के ब्लॉक प्रमुखी चुनाव में देखने को मिला जब उन्होंने अपने भाई राकेश चतुर्वेदी को नाथनगर ब्लॉक का प्रमुख बनाया। उस वक्त जय चौबे बसपाई थे और पूर्वांचल की राजनीति में बड़ा हस्तक्षेप रखने वाले “तिवारी” परिवार के करीबी थे।राजनीति में जुनून और लड़कर जीतने की क्षमता जय चौबे में कूट कूटकर भरी हुई है।वर्ष 2012 में जब बसपा ने उन्हें खलीलाबाद सीट के लिए टिकट नही दिया तब वो हाथी(बसपा) औऱ “तिवारी” का दामन छोड़ दिया था।चूंकि राजनीति क्षेत्र में जय का दबदबा उस वक्त चरम पर था और जनता में उनकी मजबूत पकड़ को जान भाजपा के बड़े नेता रमापति राम त्रिपाठी ने उन्हें अपने साथ ले लिया।ग़ौरतलब हो कि अपने बेटे शरद त्रिपाठी को संतकबीरनगर जिले की राजनीति में सेट करने की गरज ही रमापति राम त्रिपाठी को जय चौबे के करीब लाई थी। वर्ष 2009 के चुनाव में कुशल तिवारी से हारे अपने बेटे शरद को जिले का सांसद बनाने के लिए रमापति राम त्रिपाठी जय चौबे को साथ लिए और वर्ष 2012 में खलीलाबाद से जय चौबे को भाजपा का उम्मीदवार बनवाया। बात अलग रही कि 2012 में जय चौबे चुनाव हार गए लेकिन अपनी मजबूत पकड़ के चलते उन्होंने शरद त्रिपाठी को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचण्ड मतों से जिताकर सांसद बनाने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया। इन दिनों रमापति राम त्रिपाठी उनके पुत्र सांसद शरद त्रिपाठी और जय चौबे के बीच प्रगाढ़ सम्बन्ध बने रहे जिसका नतीजा 2017 में देखने को मिला जब वो पुनः भाजपा से उम्मीदार बनाये गए।अल्पसंख्यक बाहुल्य सीट मानी गयी खलीलाबाद से उन्होंने भाजपा का परचम लहराते हुए 2017 में नामुकिन को मुमकिन बनाते हुए खलीलाबाद में कमल खिलाया। भाजपा से जय चौबे के विद्रोह की शुरुआत बीते जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव से हुई। बात चेले के राजनैतिक भविष्य की थी जिसको जब भाजपा ने पार्टी कंडिडेट नही बनाया तब जय चौबे ने मोदी योगी के लहर को ध्वस्त करते हुए शिष्य बलराम यादव को सपा में शामिल करा उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष बनवाया। अपने बाहुबल के दम पर उन्होंने पूरी भाजपा और सरकारी मिशनरी को पटखनी दे अपनी राजनैतिक कुशलता का लोहा मनवाया था। वहीं अपने दूसरे शिष्य मुमताज अहमद को जिले के सबसे बड़े ब्लॉक की कमान दिलाने में महत्त्वपूर्ण रोल अदा किया था। एक तरफ जहां जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में प्रशासन ने चौतरफा घेरा बनाकर उन्हें विफल करने में जुटा था तो वहीं प्रमुख के चुनाव में सभी भाजपाई और सरकारी सिस्टम एक साथ उन्हें घेर रहा था लेकिन लड़कर जीतने की उनकी क्षमता ने उन्हें विजयश्री दिलाई और इस तरह बलराम यादव जिला पंचायत अध्यक्ष और मुमताज अहमद की मां प्रमुख बनी। पूरे सरकारी सिस्टम और भाजपाइयों के मुँह पर डंके की चोट पर कालिख़ पोतने वाले जय चौबे इसी के साथ राजनीति के मास्टरमाइंड कुशल योद्धा के रूप में अपनी छाप छोड़ी।बीते दिनों से भाजपा के साथ चली आ रही इसी टकराहट के चलते आज वो सपा में शामिल हो रहे हैं।दशक पूर्व तिवारी परिवार से छूटा उनका साथ आज पुनः एक साथ खड़ा हो गया है।राजनीति का तिवारी खानदान और जय चौबे आज एक साथ सपा में शामिल होंगे।जो जिले की राजनीति में गर्माहट लाने के लिए काफी होगा।